Saturday 28 April 2018

सब समझता हूँ

हवा के झोंके सा हरदम ही बहता हूँ
मदमस्त हूँ  मैं अपनी धुन में रहता हूँ

नकाबों में छुपे  असली चेहरे हैं  देखे
गिरगिट से पहले  अब रंग बदलता हूँ

झूठी मुस्कान और  मीठी जुबान मेरी
हकीकत सारी  कागज पे  लिखता हूँ

मतलबी जमाना और फरेबी दुनिया है
सबके मन की बातें  आँखों में पढता हूँ

देखो खंजर से  छलनी ये  पीठ है मेरी
नफरत से नही  अब प्यार से  डरता हूँ

इन  तंग  गलियों  में  मुझको ना  ढूंढो
इस भीड़ में शामिल  अकेला चलता हूँ

कई राज़  गहरे  मेरे  सीने में  दफ़न हैं
हूँ  'मौन'  बेशक  पर  सब समझता हूँ

2 comments:

  1. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏

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