Monday 14 October 2019

अगली कविता

अगली पूर्णिमा को जब चाँद अपने पूरे रुआब में आसमान पर बैठा इतरा रहा होगा और टिमटिमाते तारे उसके सम्मान में ख़ुद को बिछा चुके होंगे। 

रात का वो पहर जब ठंडी हवाएं आसमान को मदहोश कर रही होंगी और फ़िर नशे में डूबे बादल समंदर से मिलने को दौड़ लगा चुके होंगे।

ठीक उसी पहर हाथों में कलम और डॉयरी लिए हुए मैं छत पर आऊंगा और तुम्हारे बनाए हुए दिए से उजाला कर दूंगा। 

तुम दबे पाँव छत पर आना फिर एक ठंडी साँस लेना। और हाँ, उन झुमकों को पहनना मत भूलना जिन्हें तुम प्यार की निशानी कहकर अपनी लाल चुनरी में लपेट कर रखती हो।

बलखाती हवाओं के बीच जब तुम मेहंदी लगे हाथों से अपनी लटों को कान के ऊपर फंसाओगी और मुझसे नज़रें मिलाते हुए बेवजह शर्माने का अभिनय करोगी। 

ठीक उसी पल मैं लिख डालूंगा अपनी अगली कविता।

मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ कि उस पल में लिखी हुई कविता के बाद तुम संसार की सर्वश्रेष्ठ प्रेयसी कहलाओगी।

पर मैं हमेशा की तरह उसके बाद भी कोशिश करता रहूँगा तुम पर रची जाने जाने वाली सबसे सुंदर कविता को लिखने की.....

क्योंकि जब तक पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व रहेगा तब तक लिखी जाती रहेंगी प्रेम और प्रेयसी पर कविताएं।

अमित 'मौन'
   

3 comments:

  1. बहुत मोहक शृंगार रचना
    अप्रतिम अभिनव।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  2. हार्दिक आभार आपका

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