Thursday 5 July 2018

कुछ यादें...

कुछ यादें इस दिल से निकाली नही जाती
कुछ निशानियाँ हैं जो  संभाली नही जाती
कुछ  ख़्वाबों की  तामील भी  इस तरह  हुई
शिद्दत से माँगी दुआ कभी ख़ाली नही जाती
जवानी  यूँ ही सारी  भाग दौड़ में  गुजार दी
मगर पीरी तलक भी ये बदहाली नही जाती
हर   सहर   आफ़ताब  आया  कड़ी  धूप  लिये
रही शीतल सांझ वही उसकी लाली नही जाती
कुछ   ग़जलें   मुक़म्मल   होती   नही  'मौन'
एहसासों की सियाही उनमें डाली नही जाती

3 comments:

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...