Sunday 16 September 2018

छुपाया ना करो...

यूँ  तन्हा  हर  रात  सुलाया  ना  करो
फ़िर ख़्वाबों में मिलने आया ना करो

कुछ  अरमान  सुलगने  लगते हैं
यूँ बातों में इश्क़ जताया ना करो

एक ख़्वाहिश हिचकोले खाती है
दूर  रहके  प्यास  बढ़ाया ना करो

आँखों  के  रस्ते  दिल में  उतर जाएं
आशिक़ को ये राह दिखाया ना करो

चाहत  तुम्हें भी  कम नही  जानां
ज़माने को ये राज़ बताया ना करो

मंज़िल  इश्क़ की  यूँ  ही मिलती नहीं
क़दम दो चल के वापस जाया ना करो

'मौन' हो पर कुछ कहना है शायद
कर भी दो इक़रार छुपाया ना करो

1 comment:

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...