Wednesday 21 November 2018

चला था जहाँ से...

चला था  जहाँ से  वहीं हूँ  खड़ा 
हैं कदम मेरे छोटे या रस्ता बड़ा 

उठाया  जिसे  और  सहारा  दिया 
उसी का था धक्का जो मैं गिर पड़ा 

आइना हक़ीकत का आँखों में था 
मैं दिल से गिरा और नज़र में चढ़ा 

रक़ीबों की गिनती भी  कम न हुई 
फिर इतने बरस मैं हूँ किससे लड़ा 

'मौन'  जो टूटा  तो  रिश्ता  भी  छूटा 
ना अब से है झुकना मैं जिद पे अड़ा 

1 comment:

  1. अच्छे शेर ...
    जीवन के उलझाव सुलझाव से जूझते शेर ...

    ReplyDelete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...