Sunday 18 November 2018

मैं ख़ुश हूँ जो मैं आहिस्ता चल रहा हूँ


मैं ख़ुश हूँ जो मैं आहिस्ता  चल रहा हूँ
वो हैरां हैं फ़िर भी आगे निकल रहा हूँ

वक़्त लेता है करवट कई थमने से पहले
ये  गुमां है  मुझे  मैं वक़्त  बदल  रहा हूँ

बनके  पर्वत रहा  मैं  भी  बरसों बरस  यहीं
अब चली ये बयार ऐसी मैं भी पिघल रहा हूँ

भटका जो सफ़र में तो राहों से दिल लगा बैठा
कुछ ठोकरें  थी ऐसी  अब तक  संभल रहा हूँ

वो दुबक गये सभी  जो  शेरों की खाल में आए
मैं चालाक भेड़िये सा जाके अब निकल रहा हूँ
 
'मौन' हो गए वो बस मौसम के तूफां निकले
मैं वो दरया  जो अब तक  मुसलसल रहा हूँ

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