क्यों ना सुख दुःख निर्धारित मात्रा में मिले
संघर्ष इतना कि साहस जवाब ना दे
और आराम इतना कि शरीर बोझ ना बने
ज्ञान इतना कि सही गलत में फ़र्क लगे
अज्ञानता इतनी की जीवों में समानता दिखे
मुस्कान ऐसी की मन में कटुता ना रहे
और आँसू ऐसे की आँखों से निश्छलता बहे
सुख इतना कि मन में बस भक्ति जगे
और दुःख इतना कि जीवन श्राप ना लगे।
अमित 'मौन'