Tuesday 31 March 2020

सब लौट गए

तुम्हारी देह एक दीवार और काँधे खूँटी थे
पहली बार आलिंगनबद्ध होते ही 
मैं वहीं टंगा रह गया
तुमने जुल्फों तले मुझे छुपाया तो लगा 
उम्र भर की छांव मिल गयी
तुम्हारी हँसी मेरा हौसला बढ़ाती रही
तुम्हारे हृदय की धड़कन को 
मैं जीवन संगीत समझता रहा
तुम्हारी पीठ पर उंगलियां फिराते हुए लगा कि
अब ऐसे ही चलते हुए ये जीवन का सफ़र कट जाएगा ।

फिर एक दिन तुमने कंधे हटा लिए
और मैं नीचे आ गिरा 
मेरी आँखों से गिरे आँसू 
एक चिपचिपा लेप बनकर 
मेरे चारों ओर फैल गए
मैं उसी जगह चिपक गया जहाँ गिरा था ।

उसके बाद कई लोग आए 
जिन्होंने मुझे उठाने का भरसक प्रयास किया
पर मैं आज तक उठ नही सका ।

सब लौट गए
पर मैं अब भी वहीं पड़ा हूँ
वहीं जहाँ तुमने झटक के मुझे गिराया था ।

अमित 'मौन'

Saturday 28 March 2020

दुःख

दुःख की सीमा खोजते हुए जब अनंत दुःखों के ब्रह्मांड में पहुँचा तो सवालों के सागर मुझे ख़ुद में डुबा लेने को लालायित दिखे।

ब्रह्मांड जहाँ देखे मैंने कई प्रकार के दुःख...

सर्पों को दुःख है शरीर में हर वक़्त विष दौड़ते रहने का....

गिद्धों को दुःख है नोच नोच के माँस खाने की विशेषता का...

वफ़ादार कुत्ते को दुःख है चौकीदार कहलाने का....

काली बिल्ली को दुःख है अपशकुनी होने का....

चीटीं को दुःख है हर बार दब के मारे जाने का...

ऐसे ही ना जाने कितने दुःखों के बीच हम इंसानो का दुःख है मन और इच्छाओं के होने का....

अमित 'मौन'

Thursday 12 March 2020

अपनापन

सपने वो हैं जो बंद आँखों से देखे गए हों, खुली आँखें सिर्फ़ भ्रम पैदा करती हैं। 

हमारा वही है जो हमनें हासिल किया है जो ख़ुद मिल गया वो किसी और का है।

रुका वहीं जा सकता है जहाँ हम चल के गए हों, अगर कोई हम तक चल कर आया है वो आगे भी जा सकता है।

कुछ लालच बुद्धि को हर लेते हैं फ़िर पछतावा पूरे शरीर पर हावी हो जाता है। 

प्रेम के आकर्षण में हम अक़्सर लालची हो जाते हैं और जाने कितने भ्रम पाल लेते हैं।

पछतावे में हमारी हालत ठीक वैसी ही होती है, जैसे नदियाँ जलकुंभियों को दुनिया घुमाने का लालच दिखाकर शहरों के किनारे कचरा बनने के लिए छोड़ आती हैं।

जैसे ग़ुलाब को काँटों से बचाने का लालच देकर तोड़ लिया जाता है और फ़िर किसी क़िताब में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।

जैसे खाली सड़कें जल्दी पहुँचाने का लालच देकर मुसाफ़िर को छोड़ देती हैं किसी सुनसान जंगल में डर जाने के लिए।

जैसे रक़म दोगुनी करने का लालच देकर कोई ठग ले जाता है तुम्हारी सारी गाढ़ी कमाई और छोड़ जाता है तुम्हे पछतावे के साथ।

वैसे ही कोई तुम्हे ढेर सारा अपनापन दिखाकर तुम्हारे अपनों से दूर कर देता है और एक दिन ख़ुद पराया होकर तुम्हें अकेला छोड़ देता है।

अमित 'मौन'

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...