Thursday 31 May 2018

आँखें जो खुली..

आँखें जो खुली तो उन्हें अपने क़रीब पाया ना था
कभी थे रूह में शामिल आज उनका साया ना था

बेपनाह मोहब्बत की जिनसे  उम्मीदें लिये बैठे थे
उनसे तन्हाइयों की सौगातें मिलेंगी बताया ना था

एक हम ही कसीदे हुस्न के  हर बार  पढ़ते रहे
पर उसने तो कभी हाल-ए-दिल सुनाया ना था
 
वो फिरते रहे दिल में  ना जाने कितने  राज लिये
हमने तो कभी उनसे जज्बातों को छुपाया ना था
 
जाने क्यों हम  बेवजह  मदहोश  हुआ करते थे
जाम आँखों से तो  कभी उसने  पिलाया ना था
 
मीलों  कब्ज़ा कर  बना रखा था  सपनों का महल
पर उसने वो ख़्वाब कभी आँखों में सजाया ना था
 
धड़कन  'मौन'  हुई  अब  एक  आह  की  आवाज़  है
शिकवा क्या उनसे जिसने कभी अपना बनाया ना था

Saturday 26 May 2018

वो कविता सी स्वच्छंद सदा


वो कविता सी स्वच्छंद सदा
मैं ग़ज़लों सा लयबद्ध रहूँ

वो प्रेम त्याग की परिभाषा
मैं उसके लिये निबंध रहूँ

वो चाँद सी एक लालिमा लिये
मैं तारों सा बिखरा ही रहूँ

वो नदियों सी हर ओर बहे
मैं सागर सा ठहरा ही रहूँ

वो नाज़ुक कली जो फूल बने
मैं पौधे सा बढ़ता ही रहूँ

वो मस्त हवा के झोंके सी
मैं आँधी सा चलता ही रहूँ

वो मंद मंद मुस्कान लिये
मैं बिना वजह हँसता ही रहूँ

वो पहली बारिश सावन की
मैं ख़ुशबू बन मिट्टी में रहूँ

वो गंगा सी निर्मल पावन
मैं संगम बन के साथ रहूँ

वो चहुँ दिशाओं फैली हो
मैं मध्य धुरी बन जुड़ा रहूँ

वो तितली बन जब मंडराये
मैं गुलमोहर का फूल रहूँ

वो मधुमखी का छत्ता हो
मैं उन पेड़ों की डाल रहूँ

वो ठंड की कोई ठिठुरन हो
मैं जलता हुआ अलाव रहूँ


वो गौरैया जिन बागों की
मैं घने पेड़ की छाँव रहूँ

वो कोयल जैसी कूक लिये
मैं बगुले सा बस शांत रहूँ

वो जुगनू बन चमके जब भी
मैं स्याह अँधेरी रात रहूँ

वो छोर बने इस पृथ्वी का
मैं नील गगन बन साथ रहूँ

वो जंगल का एक झरना हो
मैं ऊँचा कोई पहाड़ रहूँ

वो ओस की पहली बूँद बने
मैं हरी घास बन उगा रहूँ

वो मन मंदिर की मूरत हो
मैं सजदे में बस झुका रहूँ

 

वो सात सुरों के सरगम सी
मैं उसको सुन बस 'मौन' रहूँ



By - Amit Mishra 'मौन'

Thursday 24 May 2018

बीती रात का इश्क़...

बीती रात वो कुछ इस तरह हमें बरगलाते रहे
तलब थी खट्टे आम की  वो अंगूर खिलाते रहे

हसरतें थी  उन्हें  सारी रात  जगाये  रखने की
वो साँझ ढले से जुल्फों की छाँव में सुलाते रहे

नग़मे इश्क़ के याद किये सारे उनकी ख़ातिर
एक  वो थे  जो हमें  बस लोरियाँ  सुनाते रहे

बरसों की प्यास लबों से बुझाने की ख़्वाहिश
निगाहों से पिलाये कौन वो आँख दिखाते रहे

चाँद होश में नही था चाँदनी शरमाई सी थी
हुस्न-ए-दीदार ना हुआ वो चेहरा छुपाते रहे

जज़्बात  मन के  अरमान दिल के  उफ़ान पे  थे
मिन्नतें भी की और आख़िरी पहर तक मनाते रहे

क़ुर्बत के रास्ते सोहबत के वास्ते हर दलील पेश की
उनके खामोश लब 'मौन' रहने के फायदे गिनाते रहे

Sunday 20 May 2018

कोई दीवाना होगा...

एक इशारे पे मर मिटा कोई दीवाना होगा
बिन शमा जल गया कोई  परवाना  होगा

रोशन है ये महफ़िल  कई चिराग़ों से अभी
सहर होते ही  बंजर जमीं पे  वीराना होगा

प्याले भर गये  अब जाम  छलका  करता है
जो मय की आरज़ू होगी खाली पैमाना होगा

हुस्न-ए-इश्क़ की आग़ोश में  लिपटा है अभी
गम-ए-तन्हाई हर आशिक़ का नज़राना होगा

हसरतों का जोर ना चला एक 'मौन' के आगे
टीस ग़हरी है आहों की ये ज़ख़्म पुराना होगा

Thursday 17 May 2018

अपने पराये की पहचान..

जब से हमें अपने परायों की पहचान हो गयी
तन्हा ही रहता हूँ  पूरी दुनिया  वीरान हो गयी

हँसी के ठहाके गूँजा करते थे  जिन गलियों में
अब हाल यूँ  की सारी सड़कें सुनसान हो गयी

दिल की सुन उस ओर चल दिया करते थे कदम
ठोकरें जो लगी  तो  रूह से भी पहचान हो गयी

ख्वाहिशों का बचपना भी चंचल ना रहा अब
उम्मीदों की हकीकत  कुछ यूँ जवान हो गयी

बिन झरोखों के उजाले की  आस रखूँ कैसे
वो टूटी झोपड़ी मेरी पक्का  मकान हो गयी

'मौन' रहकर अब  जज्बातों की स्याही  बनाता  हूँ
हाल-ए-दिल खुद लिखती है कलम महान हो गयी

Wednesday 9 May 2018

तेरी गुस्ताखियां...

तेरी गुस्ताखियां  हर दफ़ा  दरकिनार करते रहे
तेरी खताओं को नादानी समझ प्यार करते रहे

तेरी बातों में तो कभी जिक्र मेरा आया भी नही
देख कर  ख़्वाब तेरा खुद को बेकरार करते रहे

तू हर दफ़ा  मेरी उम्मीदों के  टुकड़े करता रहा
ना जाने क्या सोच  फिर भी  ऐतबार करते रहे

जिन राहों से तू  कबका आगे निकल चुका था
हम आज भी  उन्ही राहों में  इंतज़ार करते रहे

मानकर  अपना तुझे  ईमान भी हवाले  किया
ज़लालत ही पायी  खुद को शर्मसार करते रहे

'मौन' रहे हर बार हम  बस यही एक  खता हुई
चुप्पी  ही  वो गुनाह है  जो  बार बार  करते रहे

Tuesday 8 May 2018

एक इश्क़ ऐसा भी..

सुनो आजकल देख रही हूँ तुम बदल गये हो..अभी तो गर्मियाँ शुरू भी नही हुई और तुम अभी से दूर जाने लगे हो..ऐसा भी क्या हो गया अचानक? अभी कुछ दिन पहले तक तो मुझे होंठों से लगाने को तड़प जाया करते थे और अब मेरी तरफ देखना भी मुनासिब नही समझते..

भूल गये जब काम के बीच में बहाने बना के ऑफिस से निकल जाया करते थे और चुप-चाप एक कोने में छुप के मेरे धुंए को अपनी सांसों में समा जाने देते थे..और शाम को खाना पचाने के बहाने टहलते टहलते वो गली के नुक्कड़ वाली दुकान तक सिर्फ मेरे लिये आते थे... तब तो बड़ा सुकून मिलता था तुम्हे.. लोग कहते कहते थक गये की मत पियो मत पियो पर तुम सबको अनसुना कर मेरी तलब के नशे में चूर थे..

और अब क्या करते हो..मैं वहीँ पान वाले की दुकान में पड़ी पड़ी तुम्हारा रस्ता निहारती हूँ और तुम उसी दुकान के सामने से गुजरते हो पर मेरी तरफ देखते भी नही.. कितने निर्मोही हो गये हो तुम..

और हाँ सुना है आजकल उस मरजानी नींबू पानी और वो मुआ नारियल पानी उस पे सारा ध्यान लगा है तुम्हारा.. वो ज्यादा ख़ास हो गये हैं आजकल? अच्छा एक बात बताओ क्या तुम्हारे होंठों को उनका स्वाद ज्यादा भाने लगा है या वो ज्यादा संतुष्टि देते हैं तुम्हे?

तुम तो बड़े वाले बेवफ़ा निकले कसम से.. मौसम से पहले बदल जाते हो.. मैं जानती हूँ तुम्हारा प्यार सावन की तरह एक ख़ास मौसम में ही आता है पर एक गुजारिश करूंगी तुमसे की...

बाकी दिनों में पूरी तरह ना भुलाया करो
एक बार ही सही कम से कम मिलने तो आया करो

एक बात याद रखना...

तुम होंठों से लगाते हो तो मैं मचल जाती हूँ
तुम्हारी सांसों में समाने को मैं खुद जल जाती हूँ

मैं पहले भी तुम्हारी थी आगे भी तुम्हारी रहूँगी
मिलने आओ या ना आओ मैं फिर भी राह तकुंगी

तुमसे मिलने को बेकरार, राख होने को तैयार

तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी.. सिगरेट

हाँ हाँ पता है सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है

Thursday 3 May 2018

शब-ए-इश्क़

शब-ए-इश्क में जब वो हद से गुजर गया होगा
रंग-ए-हया से  फिर रुख्सार  निखर गया होगा

जुल्फों के साये में  कुछ वक़्त तो  गुजरा होगा
नज़रें मिलाके दो पल को वहीँ ठहर गया होगा

सुर्ख़ लबों पे बोसों की बारिश जो हुई होगी
मय  का  हर घूँट  हलक में  उतर गया होगा

बाँहों  के   घेरे  जब  ता-कमर  पहुँचे   होंगे
कैद में उनकी फिर महबूब बिखर गया होगा

चाँदनी रात जो गुजरी होगी वस्ल की आगोश में
सहर होते ही 'मौन'  फिर जाने किधर गया होगा

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...