Friday 31 May 2019

विडंबना

विडंबना:

एक इंसान के लिए सबसे ज़्यादा मुश्किल काम है उदासी में किसी अपने के ''क्या हुआ ??'' पूछने पर ''कुछ नही'' वाला जवाब देना...

वो भी उस पल में जब आपका दिल सीने से निकल कर आपकी सांसों को आज़ाद कर देना चाहता हो..
आँखें हर बाँध तोड़कर बह जाना चाहती हों..
पैरों में खड़े होने भर की ताकत भी ना बची हो..
और बाजुएं किसी के कंधे से लिपट कर आपके होंठों से ये कहलवाना चाहती हों कि..

सुनो...मैं ठीक नही हूँ....

और इस दुनिया की सबसे बड़ी विडंबना है कि आपका वो अपना जो आपके इस हाल को जानने के बाद भी आपके ''मैं ठीक हूँ'' वाली बात पर आपको ये एहसास दिलाए की उसने मान लिया है कि 'आप ठीक हैं''.......

अमित 'मौन'

Thursday 30 May 2019

प्रेम की तलाश

आकर्षण का पहला पड़ाव पार कर के पुरुष ढूंढ़ता है
अपनी प्रेमिका में मातृत्व का अनोखा स्पर्श..
वो देखना चाहता है उसकी आँखों में वही पीड़ा, वही आँसू
जो चोट लगने पर उसने देखे थे अपनी माँ की आँखों में..
वो उम्मीद रखता है अपनी प्रेमिका से उसी समझ की
जो बिना कहे समझे उसके मन की हर बात...

वो उसके साथ होकर हर फ़िक्र भूलकर फिर से मासूम होना चाहता है....
 

दिल हारने के पश्चात स्त्रियाँ तलाश करती हैं
अपने प्रेमी के अंदर छुपे उस एहसास को
जिसे पाकर वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सकें..
ठीक उसी प्रकार जैसे एक पिता के साथ होने मात्र से
असुरक्षा की हर भावना मन मस्तिष्क में प्रवेश करने से कतराए...

वो उसके साथ होकर बेफ़िक्री का सुकून चाहती है

सांसारिक सुखों और मोह से परे जब दोनों की ये तलाश पूरी होती है तब जन्म होता है वास्तविक प्रेम और आत्मीय मिलन का...
जिसकी अनुभूति मात्र ही प्रेरित करती है एक पूरा जीवन प्रेम को समर्पित करने के लिए.....

अमित 'मौन'
 

Monday 27 May 2019

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया मोहल्ले के उस पार्क की तरह है जहाँ हम सुबह या शाम को अपना खाली वक़्त बिताने जाते हैं या यूँ कहें दिन भर की थकान और मानसिक तनाव के बाद कुछ पल का सुकून ढूंढ़ने जाते हैं...पार्क में खेलते बच्चे और उनके अनोखे खेल कुछ पल के लिए ही सही हमारे चेहरे पर मुस्कान जरूर ले आते हैं।

उसी पार्क की बेंच पर बैठे हुए कुछ हमारे जैसे लोग भी मिलते हैं जो शायद हमारी ही तरह ज़िंदगी की उलझनों से दूर कुछ पल का आराम ढूंढ़ने आते हैं..उनकी और हमारी मनोदशा कमोबेश एक ही होती है पर वो और हम दोनों एक दूसरे को एक प्यारी सी मुस्कान भरी नजरों से देखते हैं...बात करने का कोई बहाना ढूँढ़ते है मसलन राजनीति या कोई सामाजिक विषय...और कई बार तो हम उसी पार्क की दुर्दशा के बारे में चर्चा करने लगते हैं जिसकी दशा को शायद हम जैसे लोगों ने ही बिगाड़ दिया हो..हम नगर निगम को उसकी सफाई या जीर्णोद्धार के लिए दोष देने लगते हैं जिसमें सारा कूड़ा हमने ही फैलाया हैं या जिसकी बेंच और झूलों को हमारे ही बच्चों ने तोड़ा है।

ख़ैर कुछ पल की चर्चा और मनोरंजन के बाद हम सभी अपनी अपनी व्यस्तताओं में लीन होने के लिए दोबारा प्रस्थान करते हैं...पर अगले दिन वापस जरूर आते हैं फिर से कुछ पल का सुकून ढूंढ़ने के लिए.....

बेंच वाले साथी हमारे ऑनलाइन फ़्रेंडलिस्ट के लोग हैं, फनी वीडियो और मीम उस पार्क में खेलते बच्चे हैं, हमारी पोस्ट और कमेंट हमारी चर्चा है और उन्हीं सब के बीच निकलती अभद्रता, अश्लीलता, विकार और विवाद हमारे द्वारा फैलाई गई गंदगी है।

अमित 'मौन'

Sunday 19 May 2019

अस्थायी रिश्ते..

अस्थायी रिश्ते:

कुछ रिश्ते गमले में उगी घास की तरह होते हैं...
घास जो अचानक ही पेड़ के आस पास उग आती है उसके चारों ओर एक सुंदर हरियाली छटा बनकर उसकी शोभा बढ़ाती है...
फिर या तो वो ख़ुद ही सूख जाती है या काट दी जाती है....
क्योंकि पौधे को विकास के लिए उस घास को छोड़ना पड़ता है...

इसी तरह आगे बढ़ने के क्रम में हमें कुछ रिश्तों से विदा लेनी पड़ती है...

जिस तरह बार बार घास उस पौधे के आस पास फिर से उगती और सूखती रहती है..ठीक उसी तरह हमारे जीवन में भी लोग आते और जाते रहते हैं...

सफ़र में कई ख़ूबसूरत पड़ाव मिलते हैं जहाँ हम सोचते हैं कि काश यहीं रुक जाएं...पर मंजिल तक पहुंचने के लिए हमें आगे बढ़ना ही पड़ता है....

अमित 'मौन'

Wednesday 15 May 2019

पैशन और पढ़ाई

आजकल मार्केट में एक नई खेप आयी है मोटिवेशनल स्पीकर्स की जो बच्चों को सिखाते हैं कि आप अपने मार्क्स पर ध्यान मत दीजिए... बिना पढ़े भी बहुत कुछ पाया जा सकता है और इन नंबर्स के खेल से कुछ नही होता...अपना पैशन फॉलो कीजिए... और साथ साथ ये उदाहरण भी देते हैं कि देखिए सचिन कम पढ़ा लिखा है...जुकरबर्ग और बिल गेट्स कॉलेज ड्रॉपआउट हैं और भी बहुत सारे...पर भाई साहब ये मंदीप महिष्मति, गुरिंदम जगाधरी और जय डेढ़ा ये सारे ख़ुद भारी भरकम डिग्रियां लेकर बैठे हुए हैं...

उसके बाद उन्हें सपोर्ट करते हुए आती हैं जोया अख़्तर की फिल्में जहाँ उनका नायक काम धंधा छोड़ कर निकल पड़ते हैं वर्ल्ड टूर पर सैर सपाटे के लिए....

मजे की बात ये है कि जोश में आकर बच्चे भी इन सबको सच मानकर निकल पड़ते हैं अपना पैशन फॉलो करने...वो पैशन जो हर फिल्म के बाद या हर साल बदलता रहता है....ऋतिक रोशन को देख कर सोचते हैं हीरो बन जाएं...अरिजीत को देख कर सिंगर बनना है...रेमो डिसूजा कहते हैं डांसर बन जाओ, ज़ाकिर को देख कर स्टैंडअप कॉमेडियन...धोनी के फैंस को क्रिकेटर बनना है...कुमार विश्वास को सुन कर हर कोई कवि बनने निकल पड़ा है...और ये सभी पैशन पूरा करने के लिए टिकटॉक नामक संस्था एक उचित प्लेटफार्म भी मुहैया करा रही है...

सोशल मीडिया देख कर मेरा पर्सनल सर्वे ये कहता है कि...2030 तक हर दूसरा बच्चा सिंगर, हर तीसरा बच्चा डांसर, हर चौथा बच्चा स्टैंडअप कॉमेडियन और हर पाँचवा बच्चा कवि होगा....

पर क्या आपको पता है या आपने कभी सोचा है कि पढ़ाई लिखाई का क्या महत्व है..जिस पढ़ाई को आप अपने पैशन के मार्ग में बाधा समझते हैं वो कितनी महत्वपूर्ण है....जिन बिल गेट्स और जुकरबर्ग के उदाहरण आपको दिए जाते हैं उन्होंने पढ़ाई पे कितना ध्यान दिया था आपको पता है??..उन्होंने भी बेसिक पढ़ाई पूरी की और कॉलेज तक पहुंचे और हाँ उन्होंने हमारी आपकी तरह सिर्फ हिंदी और गणित में ध्यान नही दिया बल्कि सॉफ्टवेयर डेवलपिंग पे ज्यादा दिमाग लगाया...और फिर सफलता पाई....और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की उनकी ख़ुद की कंपनियां भी IIT और IIM से रिक्रूटमेंट करती है जहाँ पहुँचने के लिए पढ़ाई कितनी जरूरी है वो बताने की जरूरत नही है..

और ऊपर मैंने जिन जिन के नाम लिए हैं ना आपके आइडल के तौर पर उन सभी ने अपनी बेसिक पढ़ाई पूरी की है...

एक बात याद रखिये आप अपना पैशन पढ़ाई के बाद भी और उसके साथ भी पूरा कर सकते हैं और पैशन पूरा करने में असफल रहने पर भी ये पढ़ाई आपको बचा लेगी पर अगर बिना पढ़ाई के आप पैशन पूरा करने जाएंगे और असफल लौटेंगे तो फिर कहीं के नही रहेंगे....

तो आप सब से सिर्फ़ इतना ही कहना है कि आप सब कुछ करें पर अपनी बेसिक एजुकेशन को जरूर पूरा करें और मन से करें...हर कोई टॉप नही आ सकता पर हर किसी के लिए पढ़ना और अच्छे से पढ़ना बहुत जरूरी है..

और हाँ हर कोई स्पेन घूमना चाहता है (जिंदगी ना मिलेगी दोबारा की तरह) मगर उसके लिए पैसे चाहिए होते हैं और उसके लिए सफल होना पड़ता है....

अमित 'मौन'

Monday 13 May 2019

एक लड़की प्यारी ...

एक लड़की प्यारी  सुंदर परियों  के जैसी
ना जाने क्यों वो बस मुझ पर ही मरती है

मैं टूटा बिखरा  ख़ुद में खोया रहता हूँ
वो उसपे भी मुझको खोने से डरती है

ख़ामोशी  मेरी  बस  वो ही  पढ़ पाती है
फ़िर आँखों से जी भर के बातें करती है

मैं  अक़्सर  ही  देरी  करता  हूँ  आने में
पर बिन शिकवों के राह मेरी वो तकती है

कुछ लोगों ने  तोड़ा  दिल मेरा  टुकड़ों में
और हर हिस्से में बस वो ही अब रहती है

मैं ख़ुद को जब भी तन्हा माना करता हूँ
संसार मेरा  तुम ही हो  मुझसे  कहती है

हर बला मेरी  वो  अपने  सर  लेना चाहे
हर दुआ में अपनी नाम मेरा ही रखती है

अब सांस उसी के दम से आती है मेरी
बन लहू मेरी  रग रग में वो ही बहती है

अमित 'मौन'

Thursday 2 May 2019

पाकर तुमको ये जाना है मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया...

प्रेम पथिक बनने की मैंने,
वजह को ऐसे ढूंढ़ लिया
चाँद सितारों से जाकर के,
पता तुम्हारा पूछ लिया

पाकर तुमको ये जाना है-2,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

पतझड़ के मौसम में जैसे,
पेड़ कोई मुरझाया था
बरखा की बूंदों के जैसा,
प्रिये तुम्हारा साया था
भँवरे ने बगिया में जैसे-2,
फूल कोई हो सूँघ लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

तू पुरवा के मस्त पवन सी,
मैं झोंका आवारा था
तेरी छुअन से फ़िज़ा ये बदली,
महका उपवन सारा था
किसी शराबी के जैसे फ़िर-2,
मैं मस्ती में झूम लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

दिन गुजरे जब तेरी याद में,
रातें अक़्सर तन्हा हों
नींदों के भी गलियारे में,
जब पलकों का पहरा हो
ख़्वाबों में तुझसे मिलने को-2,
इन आँखों को मूँद लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया
 
इश्क़ दुहाई दे दे कर दिल,
तुझसे ही मिलना चाहे
तेरे जिस्म की ख़ुशबू पाकर,
रूह मेरी खोना चाहे
बाहों में कस कर पकड़ा फिर-2,
माथा तेरा चूम लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

प्रेम पथिक बनने की मैंने,
वजह को ऐसे ढूंढ़ लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

अमित 'मौन'

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...