Wednesday 29 September 2021

हर दुःख का अंत जरूरी है

ये उम्र बिखरती जाती है
मैं आस लगाए रखता हूँ
ना जाने कब एक आहट हो
मैं नैन बिछाए रखता हूँ

यूँ तन्हा यार रहूँ कब तक
ये दर्द, ये टीस सहूँ कब तक
इन सीलन भरी हवाओं से
ये दुखड़े यार कहूँ कब तक

अब इंतज़ार की घड़ियों ने भी
वक़्त बताना छोड़ दिया
रस्ता तकते इस ऐनक को
अश्क़ों ने बह कर तोड़ दिया

माना कि तुम में और मुझ में
अब भी मीलों की दूरी है
पर रात की सुबह तो निश्चित है
हर दुःख का अंत जरूरी है

अमित 'मौन'



P.C.: GOOGLE


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