Monday 26 December 2022

अलग दुनिया

तुम थी तो सब कितना आसान लगता था। ये दुनिया तुम्हारे इर्द गिर्द सिमटी हुई थी। समंदर की लहरें तुम्हारी आँखों में हिचकोले मारती और पुतली बने आसमान को भिगोया करती थी। केशों में हवाएं कैद करके तुम उंगलियों से तूफान की दिशा तय करती थी। बारिशें तुम्हारी मुस्कुराहट से मिलने आया करती थीं और पेड़ तुम्हारे लिए हरियाली का तोहफ़ा लाया करते थे। हर रास्ता तुमसे होकर गुजरता और हर सफ़र की मंज़िल तुम थी। मैं अनंत संभावनाओं के उस शिखर पर था जहाँ सब कुछ बस पलकें झपकाने जितना आसान था।


पर अब लगता है मैं किसी और दुनिया में हूँ और ये दुनिया इतनी बड़ी है कि हर रोज जाने कितने लोग एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं और फ़िर कभी नही मिल पाते। ख़ुशियों ने रूठकर ख़ुदकुशी कर ली है और पानी बादलों को छोड़कर मेरी आँखों मे बसता है। मैं अनहोनी की आशंकाओं से घिरा हुआ हूँ और वो एक मुमकिन रास्ता ढूँढ़ रहा हूँ जिसकी मंज़िल तुम हो।

मैं दो दुनियाओं के बीच फँसकर सपने और हकीक़त के बीच का फर्क तलाश रहा हूँ और तुम शायद कहीं दूर मेरे इंतज़ार में जीवन के फूलों को मुरझाते हुए देख रही हो।

अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE


Thursday 15 December 2022

उदासी

जीवन की तमाम व्यस्तताओं के बीच अपनी उदासी के लिए समय निकाल लेता हूँ। क्या छूटा उसके बारे में सोचते हुए बस समेटे हुए को देख लेता हूँ। कितने सुख थे जो मेरे हो सकते थे, कितने दुःख हैं जिनसे बच सकता था। अगर सहने की कोई सरहद होती तो बहुत पहले थक चुका होता।


सच कहूँ तो जीवन में अंधेरों ने बड़ा सहारा दिया क्योंकि उजालों में मुस्कुराने की मजबूरी कंधों पर बोझ सी जान पड़ती है। ऐसे में रातें सहारा बन के आती हैं और एक सुकून का कोना सारा दुःख पी जाता है।

बहुत कुछ है जिसे भूल जाना चाहता हूँ पर याद रखने की बीमारी ऐसी जिसका कोई इलाज नही है। जीवन में अगर आगे बढ़ना हो तो पीछे नही देखना चाहिए पर मन है कि पुरानी संदूक से आधे जले हुए ख़त निकाल ही लाता है। मन चंचल है ये सब जानते हैं पर मन निर्दयी भी है ये कोई नही जानता। मन कब क्या सोचे और मन की कोई सोच कब मन को ही व्यथित कर दे ये मन भी नही जानता।

ये बात पूरी तरह सच है कि ख़ुद से मिलने का सही समय अकेलापन है, ख़ुद को जानने का सही वक़्त उदासी है और ख़ुद को खोजने के लिए दुःखों से मिलना जरूरी है।


अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE


अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...