Sunday 26 December 2021

फ़िर मिलेंगे

इतवार की फुरसत भरी शाम, गर्मियों को धकेल कर विदा करती हुई दशहरे के बाद चलने वाली शीतल हवाएं, ऊपर ऊपर से खुश दिखते मगर एक दूसरे के लिए अजनबी लोगों की भीड़ और साथ ही इन सबकी आवाज़ों को दबाती हई जोर मारती समंदर की लहरें। किसी व्यस्त शहर में पड़ने वाला समंदर का किनारा फुरसत वाली शामों में भी कितना कुछ अपने अंदर समेटे रहता है।


इन सबके बीच मगर इनसे छुपता हुआ एक अनोखा कोना जहाँ बैठ कर मैं इस पल अलग अलग रंग के बादलों से ढका हुआ आसमान निहार रहा हूँ। यही वो जगह है जहाँ बैठे बैठे हम दोनों ने ना जाने कितनी ही शामों को रात के आँचल में छुपते हुए देखा था।

तुम अक़्सर यहाँ बैठ कर पेंटिंग्स बनाया करती थी और मुझे ना चाहते हुए भी 'वाह कितनी सुंदर बनाई है' बोलना पड़ता था। सच कहूँ तो मुझे पेंटिंग्स में जरा भी दिलचस्पी नही थी पर उन्हें बनाते हुए तुम्हारे चेहरे पर जो चमक आती थी वो मेरी आँखों को रोशन कर जाती थी। वैसे तुम्हारी एक बात जिससे मैं हमेशा ताल्लुक रखता था वो ये कि पूरे चौबीस घंटे के दिन में एक शाम ही ऐसी होती है जो सुकून देती है और इस पर ये तर्क भी अच्छा कि सुबह नया जोश देती है,दोपहर थकान देती है और रात उदासी देती है। एक शाम ही है जो सुकून देती है और उस पर भी अगर छुट्टी वाली शाम हो तो सोने पे सुहागा।

तुम्हें शामें कितनी ज्यादा पसंद थी ये मैं इस बात से ही जान गया था जब तुमने कहा था कि अगर कभी प्रलय आए और दुनिया ख़त्म होने लगे तो वो शाम का समय हो ताकि हर कोई रंग बदलते हुए बादलों का अनोखा मंज़र देखते हुए ऑंखें बंद करे। सच बताऊँ अगर मुझे उस वक़्त जरा भी अंदाज़ा होता कि ये प्रलय तुम्हे लेने आएगी और ये दुनिया मेरे लिए ख़त्म होगी तो मैं तुम्हारे होंठों को उसी वक्त ये बात पूरी करने से रोक लेता। पर ना मैं तुम्हारी बात पूरी होने से रोक पाया और ना ही तुम्हे जाने से रोक पाया।

मुझे अक़्सर अपने किए हुए एक वादे पर अफ़सोस रहता है जो मैंने तुमसे किया था। मैंने ये वादा तो कर लिया कि मैं कभी भी किसी के सामने उदास नही रहूँगा क्योंकि तुम्हारे मुताबिक़ मेरा उदास चेहरा बिल्कुल अच्छा नही लगता। मुझे क्या मालूम था कि अब उदासी मेरे जीवन में हमेशा के लिए शामिल होने वाली है और फ़िर भी मुझे उसे सबसे छुपा कर रखना पड़ेगा। पर देखो यहाँ कोई नही है और यहाँ मैं उदास होने के साथ साथ जी भर कर रो भी सकता हूँ। मैंने अक्सर समंदर के किनारे लोगों को उदास बैठे देखा है और मुझे लगता है कि उनके आँसुओं के नमक से ही इस समंदर का पानी खारा हुआ है।

तुम्हे पूरा यकीन था कि अच्छे लोग जब हमें छोड़ कर जाते हैं तो वो तारे बन जाते हैं और तुम्हारे उसी यकीन को तुम्हारा इशारा मानकर मैं अब भी शाम को रात होते हुए देखता हूँ। पर अब आसमान का रंग बदलते हुए नही बल्कि तुम्हे तारा बनकर जगमगाते हुए देखता हूँ। अब जब भी किन्ही दो तारों को एक साथ देखता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखें मुझे ऊपर से देख रही हैं और मैं अनायास ही शरमा जाता हूँ। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अच्छा दिखूं वरना कहीं तुम्हे इस बात का दुःख ना हो कि तुम्हारे बिना मैंने अपना क्या हाल बना रखा है।

और जब तुम अपनी रोशनी को थोड़ा और तेज करती हो मैं समझ जाता हूँ कि आज तुम भी मुझे देख कर ख़ुश हो। वैसे तारा बनकर तुमने बहुत अच्छा किया। अब थोड़ी दूर से ही सही कम से कम हम एक दूसरे को देख तो सकते हैं।

फ़िर मिलेंगे के वादे के साथ अब मैं चलता हूँ और सदा चमकने के वादे के साथ तुम भी मुझे विदा करो।

हे समंदर तुम्हारे खारेपन को बढ़ाने के लिए मुझे क्षमा करना।

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Sunday 19 December 2021

उम्मीद

भीतर एक अजीब सा सन्नाटा है इन दिनों। जैसे मन किसी कोठरी में कैद हो और अँधेरा इतना कि हवाएं भी रास्ता ना खोज पाएं। हाल कुछ ऐसा है कि चीखने की इच्छा है मगर आवाज़ नही। रोने को आँखें है मगर आँसू नही। कहने को बहुत कुछ है पर सुनने को कोई नही और जीने को सांसें हैं मगर जीवन नही।

अक्सर ऐसा होता है कि जब हम बहुत कुछ खो देते हैं तब हमारे अंदर पाने की लालसा मर जाती है। ये समय ऐसा होता है कि हम जीने का मकसद ही खो देते हैं। लड़ने की हिम्मत होते हुए भी हम हथियार जमीन पर रख देते हैं। लड़ने का मजा तब तक ही है जब तक जीतने की जिद जिंदा हो। पर जब मन हार मान ले तो शरीर को युद्ध में भेजने का कोई फ़ायदा नही।

मृतक सिर्फ वो नही जिसकी साँसें ख़त्म हो गयी हों। मरा हुआ वो भी है जिसके जीवन का कोई उद्देश्य ना हो।

सुना है जब शरीर बोझ बन जाए तो साँसें बहुत जल्दी साथ छोड़ देती हैं। पर कुछ तो है जो ये डोर टूटने नही दे रहा और मैंने उस कुछ को उम्मीद का नाम दे दिया है।

क्योंकि एक उम्मीद ही है जो इंतज़ार की उम्र लम्बी कर सकती है।


अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Wednesday 15 December 2021

अंदाज़ा

जाते हुए तुमने कहा था कि मेरी आँखों से सिर्फ़ दो बूँदें ही तो छलकी हैं इसका मतलब मुझे बिछड़ने का उतना दुःख नही है जितना तुम्हे है। काश मैं तुम्हें ये बता पाता कि हाथ कटने पर ख़ून की एक बूँद गिरे या पूरी धार बहे दर्द उतना ही होता है।


जीवन कितना आसान होता अगर आँसू रोकने और दर्द सहने की क्षमता हर इंसान में बराबर होती। हर कोई एक जैसा चीखता और हर कोई उतना ही रोता। पर अफ़सोस कि जीवन ऐसा नही है।

कभी कभी मैं भी आख़िरी बार रोना चाहता हूँ और इतना रोना चाहता हूँ कि आँसुओं की धार में सारे दुःख, दर्द, तकलीफ़ और यादें सब बह जाएं। मैं आँसुओं के ख़त्म हो जाने तक रोते रहना चाहता हूँ। पर मैं जानता हूँ आख़िरी बार रोने जैसा कुछ नही होता। एक बार रो लेने के बाद दोबारा रोना न आए ऐसा नही हो सकता। आँसू कभी सूखते नही बस जम जाते हैं और यादों की गर्मी मिलते ही फ़िर बहने लगते हैं।

जीवन कितना आसान होता अगर हम भावनाओं पर नियंत्रण रख सकते। किसी के पास आने और किसी के दूर जाने पर हमें क्या और कितना सोचना है इन सब पर हम क़ाबू रख पाते तो कितना अच्छा होता। पर जो अपने मन मुताबिक चले वो जीवन कैसा।

ख़ैर, मेरे मन की चंचलता ख़त्म हो गयी है, इच्छाओं ने आत्महत्या कर ली है और नींदों ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। इन सब के बावजूद मेरी पलकें बाँध बनकर खारे पानी को रोके हुए हैं।

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जिसका हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगाते हैं पर सच्चाई उससे बिल्कुल अलग होती है। ठीक वैसे ही जैसे तुमने मेरे दुःख का अंदाज़ा लगाया था।

मैं कभी कभी सोचता हूँ कि काश कुछ ऐसा अविष्कार हो जाए जिससे हम दुःख को नाप सकें और सुख को बाँध सकें। फ़िर शायद दुनिया को जीने की ज्यादा वजहें मिल पाएंगी।

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...