Sunday 7 July 2019

पहला ख़त

Hi,

कैसी हो?

ठीक ही होगी.....ठीक क्यों मजे में होगी..मजा ही आता है ना तुम्हे मुझसे दूर रहकर मुझे तड़पाने में...

पर देखो अब मैं तड़पता नही हूँ और मेरी बेकरारी भी ख़त्म हो चुकी है....जानती हो क्यों?

क्योंकि मैंने खुद को समझा लिया है कि अब तुम नही आने वाली..पर सच बताऊँ कभी कभी पता नही क्यूँ लगता है काश आ जाती तो....

तुम कहती थी ना एक दिन नही रहूँगी तब पता चलेगा मेरी अहमियत का...तो सुनो इतने दिनों में मुझे सब पता चल गया है..अब तो आ जाओ..

मैं सोचता हूँ की ऐसा कह दूँ तुमसे...पर मुझे पता है तुम नहीं आओगी..

अच्छा सुनो तुम्हारा एक पसंदीदा खेल था जिसमें तुम कहती थी कि 'उल्लू बनाया बड़ा मजा आया' मैं ना आजकल खुद को ही उल्लू बनाया करता हूँ...

पता है कैसे?

हर रात मेरी छत की उत्तर दिशा में जो तारा निकलता है ना उसे मैं तुम समझ के बातें करता हूँ और पता है दिल ने तो सच भी मान लिया कि वो तुम ही हो..

हाँ गुस्सा हो इसलिये कुछ जवाब नही देती पर कम से कम रोज आती तो हो..ये भी तो प्यार है..अगर प्यार ना होता तो रोज रोज तुम कैसे आती? मतलब वो तारा रोज निकलता है और उसी जगह पर मिलता है..पर तुम चिंता मत करो..मुझे पता है वो तुम नही हो..वो तो बस तुम्हारी खुशी के लिये मैं आज भी उल्लू बन जाया करता हूँ....

और वो तुम हमेशा कहती थी ना कि चलो किसी दिन समंदर की लहरों से खेलते हैं..तब तो मैं नही गया कभी... पर अब अक्सर मैं समंदर किनारे जाया करता हूँ..

पूछोगी नही क्यों?

क्योंकि मुझे लगता है कि तुम शायद सागर के दूसरे किनारे से मुझे देख रही हो और अब जो लहरें इस किनारे आयेंगी उनके साथ तुम भी आओगी..हालाँकि मुझे पता है ऐसा कुछ नही होगा पर फिर भी मैं सोच लेता हूँ...

अच्छा सुनो ना अब ज्यादा कुछ नही लिखूँगा क्योंकि मुझे पता है तुम्हे पढ़ना तो है नही और अभी मुझे भी निकलना है इस दुनियादारी की भीड़ में खुद को खोने के लिये तो अभी बस इतना ही...बाकी अगले खत में..

अच्छा हाँ सुनो..अब मैं ऐसे ही हर बार समंदर किनारे खड़ा होकर ये खत जहाज बनाकर फेंका करूँगा...और जब तुम्हें ये मिल जाये तो तुम रात में उस तारे की रोशनी थोड़ी बढ़ा लेना...मैं समझ जाऊँगा की तुमने पढ़ लिया

और वो आख़िरी में लिखते हैं ना कि पत्र मिलते ही पत्र का जवाब जल्द देना..मैं वो बिल्कुल नही लिखूँगा... क्योंकि मुझे पता है तुम्हे जवाब तो देना नही...

पर मैं खत भेजता रहूँगा..

सारी उम्र तुम्हारी प्रतीक्षा में..

तुम बिन अधूरा..

'मौन' (ये नाम तुमने ही दिया था ना)

2 comments:

  1. बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका

      Delete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...