Sunday 29 September 2019

नीरस जीवन

कभी कभी ज्यादा ज्ञान अर्जित कर लेने से भी जीवन नीरसता से भर जाता है। जब हमें सब कुछ पता चल जाता है तो उत्सुकता मर जाती है और जीवन का ध्येय ख़त्म हो जाता है।

हम अक़्सर ये कहते हैं कि बाल्यकाल मानव जीवन का सबसे ख़ुशनुमा दौर होता है और हमें अपने अंदर के बच्चे को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए। इसका एक अर्थ ये भी है कि जीवन में उत्सुकता और अज्ञानता (कुछ बातों के लिए) भी बनी रहनी चाहिए।

उत्सुकता बनाए रखने का एक तरीका ये भी है कि हम जीवन मे कुछ न कुछ नया करते रहें या नयी कोशिश करते रहें। हम उन चीजों को करने का प्रयास करें जिसके बारे में हमें नही पता या यूँ कहें जो हमें सीखनी पड़ें।

क्योंकि जब तक हमारे अंदर अज्ञानता की भावना रहेगी तब तक हमारे मस्तिष्क में घमंड नही आएगा और जब तक सीखने की ललक और उत्सुकता रहेगी तब तक जीवन नीरस नही होगा।

नासा और इसरो अभी भी चाँद की सटीक दूरी का अंदाज़ा लगाने के लिए प्रयासरत हैं पर मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि चाँद तो हमारे घर के सामने ही है। किसी दिन कोई बड़ी सी चिड़िया आएगी और मुझे अपने पंखों पर बिठाकर चाँद तक ले जाएगी।

अमित 'मौन'

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01-10-2019) को     "तपे पीड़ा  के पाँव"   (चर्चा अंक- 3475)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. जी हार्दिक आभार आपका

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  2. सुंदर और सार्थक पोस्ट।

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    1. जी हार्दिक धन्यवाद आपका

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  3. सच है आपकी बात ...
    समय पे ही चीजों को जाना जाए तो अच्छा है ... जब तक नासमझ हैं दुनिया को जी सकेंगे ... समझ आने पर तो प्राप्ति है ... खोजने का मजा नहीं ...

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    1. जी सही कहा आपने...बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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