प्रेम में सफ़ल ना हो सके अनगिनत प्रेमियों से परे मैं तुम्हें ना पाकर भी कभी हताश नही हुआ।
हज़ारों दार्शनिकों द्वारा कही गयी एक बात सदैव मेरे मस्तिष्क में आसन लगा कर विराजमान रही, जिसमें कहा गया कि 'हर घटना के दो पहलू होते हैं पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक'। अब ये आपके ऊपर है कि आप कौन से पहलू को ज़्यादा तवज्जो देते हैं।
सभी हताश प्रेमियों से मैंने सुना कि उन्होंने सिर्फ़ प्रेम किया और प्रेम दिया, बदले में उन्हें प्रेम नही मिला। उन सबके उलट मेरी राय ये रही कि प्रेम ना ही किया जा सकता है और ना ही लिया या दिया जा सकता है।
प्रेम एक अनुभूति है जो स्वयं के भीतर से उत्पन्न होती है । जब तक आपके भीतर वो अनुभूति जन्म लेती रहेगी आप ख़ुश रहेंगे और जैसे जैसे उस अनुभूति की उत्पादन क्षमता कम होती रहेगी वैसे वैसे आपकी मुश्किलें बढ़ती रहेंगी।
इसके अलावा मुझे अपनी असफ़लता की कोई वज़ह नही मिली। फ़िर भी किसी के कारण पूछने पर मेरा चुप रहना मुझे अवसादग्रस्त प्रेमियों की श्रेणी में खड़ा कर सकता है ये सोचकर मैंने बेवज़ह ही कुछ वज़हें बना ली।
मसलन एक दूसरे को देख कर हमारा स्वतः ही खिंचे ना चले आना इस बात का प्रमाण था कि हमारी चुम्बकीय शक्ति क्षीण हो चुकी है।
एक दूसरे के हाथों में हाथ रखने के पश्चात भी सिहरन या कंपन ना होना इस बात का इशारा था कि हमारे भीतर की विद्युतीय तरंगों ने दौड़ना बंद कर दिया है।
और तो और तुम्हारे घने लंबे बालों से विद्रोह कर बाहर झाँकती तुम्हारी लटों को कानों के पीछे धकेलते हुए मेरी उँगलियों का तुम्हारे गर्दन और कंधों का सफ़र तय करते हुए पीठ पर गिरने का प्रयास भी ना करना इस बात का पुख़्ता प्रमाण था कि हमारा प्रेम ब्रम्हांड के उस ग्रह पर पहुँच गया था जहाँ गुरुत्वाकर्षण अपनी अंतिम साँसे ले चुका था।
दुनिया के लिए इन वजहों को तलाशने के बाद भी मुझे कभी अपने असफल प्रेमी बनने का कारण जानने में कोई रुचि नही रही क्योंकि मैंने उस सकारात्मक पहलू को जान लिया जिसमें ये सुकून था कि निर्जीव रिश्ते को निभाने के बजाय सजीवता का परिचय देते हुए अपनी अनुभूति को प्राथमिकता दी जाए।
और जहाँ अनुभूति नही वहाँ प्रेम नही।।
अमित 'मौन'.
हज़ारों दार्शनिकों द्वारा कही गयी एक बात सदैव मेरे मस्तिष्क में आसन लगा कर विराजमान रही, जिसमें कहा गया कि 'हर घटना के दो पहलू होते हैं पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक'। अब ये आपके ऊपर है कि आप कौन से पहलू को ज़्यादा तवज्जो देते हैं।
सभी हताश प्रेमियों से मैंने सुना कि उन्होंने सिर्फ़ प्रेम किया और प्रेम दिया, बदले में उन्हें प्रेम नही मिला। उन सबके उलट मेरी राय ये रही कि प्रेम ना ही किया जा सकता है और ना ही लिया या दिया जा सकता है।
प्रेम एक अनुभूति है जो स्वयं के भीतर से उत्पन्न होती है । जब तक आपके भीतर वो अनुभूति जन्म लेती रहेगी आप ख़ुश रहेंगे और जैसे जैसे उस अनुभूति की उत्पादन क्षमता कम होती रहेगी वैसे वैसे आपकी मुश्किलें बढ़ती रहेंगी।
इसके अलावा मुझे अपनी असफ़लता की कोई वज़ह नही मिली। फ़िर भी किसी के कारण पूछने पर मेरा चुप रहना मुझे अवसादग्रस्त प्रेमियों की श्रेणी में खड़ा कर सकता है ये सोचकर मैंने बेवज़ह ही कुछ वज़हें बना ली।
मसलन एक दूसरे को देख कर हमारा स्वतः ही खिंचे ना चले आना इस बात का प्रमाण था कि हमारी चुम्बकीय शक्ति क्षीण हो चुकी है।
एक दूसरे के हाथों में हाथ रखने के पश्चात भी सिहरन या कंपन ना होना इस बात का इशारा था कि हमारे भीतर की विद्युतीय तरंगों ने दौड़ना बंद कर दिया है।
और तो और तुम्हारे घने लंबे बालों से विद्रोह कर बाहर झाँकती तुम्हारी लटों को कानों के पीछे धकेलते हुए मेरी उँगलियों का तुम्हारे गर्दन और कंधों का सफ़र तय करते हुए पीठ पर गिरने का प्रयास भी ना करना इस बात का पुख़्ता प्रमाण था कि हमारा प्रेम ब्रम्हांड के उस ग्रह पर पहुँच गया था जहाँ गुरुत्वाकर्षण अपनी अंतिम साँसे ले चुका था।
दुनिया के लिए इन वजहों को तलाशने के बाद भी मुझे कभी अपने असफल प्रेमी बनने का कारण जानने में कोई रुचि नही रही क्योंकि मैंने उस सकारात्मक पहलू को जान लिया जिसमें ये सुकून था कि निर्जीव रिश्ते को निभाने के बजाय सजीवता का परिचय देते हुए अपनी अनुभूति को प्राथमिकता दी जाए।
और जहाँ अनुभूति नही वहाँ प्रेम नही।।
अमित 'मौन'.
Image Credit: GOOGLE
और जहाँ अनुभूति नही वहाँ प्रेम नही.... सच कहा आपने
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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