Wednesday 29 September 2021

हर दुःख का अंत जरूरी है

ये उम्र बिखरती जाती है
मैं आस लगाए रखता हूँ
ना जाने कब एक आहट हो
मैं नैन बिछाए रखता हूँ

यूँ तन्हा यार रहूँ कब तक
ये दर्द, ये टीस सहूँ कब तक
इन सीलन भरी हवाओं से
ये दुखड़े यार कहूँ कब तक

अब इंतज़ार की घड़ियों ने भी
वक़्त बताना छोड़ दिया
रस्ता तकते इस ऐनक को
अश्क़ों ने बह कर तोड़ दिया

माना कि तुम में और मुझ में
अब भी मीलों की दूरी है
पर रात की सुबह तो निश्चित है
हर दुःख का अंत जरूरी है

अमित 'मौन'



P.C.: GOOGLE


15 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत ही मार्मिक और हृदय स्पर्शी रचना

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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  4. हार्दिक आभार आपका

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  5. हर दुख का अंत जरूरी है....
    वाह!!!
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन।

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    1. जी बेहद शुक्रिया आपका

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  6. दुःख का अंत जरूरी है क्योंकि समय चक्र में किसी भी भाव का स्थायी होना असंभव है।
    सकारात्मक संदेश देती सुंदर सृजन।
    सादर।

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    Replies
    1. जी हार्दिक धन्यवाद आपका

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