Tuesday, 31 March 2020

सब लौट गए

तुम्हारी देह एक दीवार और काँधे खूँटी थे
पहली बार आलिंगनबद्ध होते ही 
मैं वहीं टंगा रह गया
तुमने जुल्फों तले मुझे छुपाया तो लगा 
उम्र भर की छांव मिल गयी
तुम्हारी हँसी मेरा हौसला बढ़ाती रही
तुम्हारे हृदय की धड़कन को 
मैं जीवन संगीत समझता रहा
तुम्हारी पीठ पर उंगलियां फिराते हुए लगा कि
अब ऐसे ही चलते हुए ये जीवन का सफ़र कट जाएगा ।

फिर एक दिन तुमने कंधे हटा लिए
और मैं नीचे आ गिरा 
मेरी आँखों से गिरे आँसू 
एक चिपचिपा लेप बनकर 
मेरे चारों ओर फैल गए
मैं उसी जगह चिपक गया जहाँ गिरा था ।

उसके बाद कई लोग आए 
जिन्होंने मुझे उठाने का भरसक प्रयास किया
पर मैं आज तक उठ नही सका ।

सब लौट गए
पर मैं अब भी वहीं पड़ा हूँ
वहीं जहाँ तुमने झटक के मुझे गिराया था ।

अमित 'मौन'

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