है इश्क़ अगर तो जताना ही होगा
दिलबर को पहले बताना ही होगा
पसंद नापसंद की है परवाह कैसी
तोहफ़े को पहले छुपाना ही होगा
धड़कन हृदय की सुनाने की ख़ातिर
उसको गले तो लगाना ही होगा
आँखों ही आँखों में जब हों इशारे
ओ पगली लटों को हटाना ही होगा
छूकर तुम्हें अब है महसूस करना
होठों को माथे लगाना ही होगा
ख़्वाबों को रस्ता देने की ख़ातिर
नींदों को रातों में आना ही होगा
मज़ा बेक़रारी का लेना अगर हो
मिलन के पलों को घटाना ही होगा
अमित 'मौन'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब।
शुक्रिया आपका
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