Thursday 15 December 2022

उदासी

जीवन की तमाम व्यस्तताओं के बीच अपनी उदासी के लिए समय निकाल लेता हूँ। क्या छूटा उसके बारे में सोचते हुए बस समेटे हुए को देख लेता हूँ। कितने सुख थे जो मेरे हो सकते थे, कितने दुःख हैं जिनसे बच सकता था। अगर सहने की कोई सरहद होती तो बहुत पहले थक चुका होता।


सच कहूँ तो जीवन में अंधेरों ने बड़ा सहारा दिया क्योंकि उजालों में मुस्कुराने की मजबूरी कंधों पर बोझ सी जान पड़ती है। ऐसे में रातें सहारा बन के आती हैं और एक सुकून का कोना सारा दुःख पी जाता है।

बहुत कुछ है जिसे भूल जाना चाहता हूँ पर याद रखने की बीमारी ऐसी जिसका कोई इलाज नही है। जीवन में अगर आगे बढ़ना हो तो पीछे नही देखना चाहिए पर मन है कि पुरानी संदूक से आधे जले हुए ख़त निकाल ही लाता है। मन चंचल है ये सब जानते हैं पर मन निर्दयी भी है ये कोई नही जानता। मन कब क्या सोचे और मन की कोई सोच कब मन को ही व्यथित कर दे ये मन भी नही जानता।

ये बात पूरी तरह सच है कि ख़ुद से मिलने का सही समय अकेलापन है, ख़ुद को जानने का सही वक़्त उदासी है और ख़ुद को खोजने के लिए दुःखों से मिलना जरूरी है।


अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE


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