Sunday 27 December 2020

सुख-दुःख

दुःखों का कोई तय ठिकाना नही होता
हम सुख ढूँढ़ते हैं, दुःख तक पहुँच जाते हैं ।

सुख बंजारे हैं भटकते रहते हैं
दुःख जगह ढूँढ़ते हैं और बस जाते हैं ।

सुख के दिन छोटे हुआ करते हैं
दुःख के हिस्से लंबी रातें हैं ।

हम सुख में कितना कुछ भूलने लगते हैं
दुःख आते ही सब कुछ पहचानते हैं ।

सुख कीमती है, डराकर रखता है
दुःख हिम्मत देते हैं, मज़बूत बनाते हैं ।

अमित 'मौन'

Friday 25 December 2020

सपने

सपने तब तक आकर्षक होते हैं जब तक वो पूरे ना हो जाएं और जो सच हो जाए वो सपना कैसा।

ये बात सच है कि पार्क की बेंच पर बैठे हुए तुमने अपना सिर मेरे कंधे पर झुका दिया था और तुम्हारे नर्म हाथों को अपने हाथों में लेते हुए मैंने हमेशा के लिए उन्हें थामने का वादा किया था। पर मैं अपने ही किये हुए वादे को पूरा कर पाऊं ये एक सपना है।

ये मेरा धर्म भी है और कर्तव्य भी कि मैं दुनिया से तुम्हारे लिए लड़ जाऊं और तुम्हें अपने साथ ले आऊं। पर मैं इस लड़ाई में जीत जाऊं ये एक सपना है।

मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ ये इच्छा है। पर तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी ये एक सपना है।

दुनिया से विदा लेकर गए लोग लौटते नही ये विधि का विधान है। पर ईश्वर किसी दिन इस नियम को ताक पर रखकर एक दूत भेजेगा जो तुम्हें हमेशा के लिए मेरे पास छोड़ जाएगा ये एक सपना है।

सपने वो नही जिन्हें कोशिश करके पा लिया जाए क्योंकि जिन्हें हम पूरा कर सकते हैं वो सिर्फ़ इच्छाएं हैं। सपने वो हैं जिनके सच होने की इच्छा में हम ज़िंदगी गुज़ार देते हैं और फ़िर सपने तो सपने हैं वो सच कहाँ हुआ करते हैं।

अमित 'मौन'

P.C. : GOOGLE

 

Wednesday 16 December 2020

दूरियाँ

दूरियाँ- यही एक शब्द है जो अब हमारे बीच रह गया है।पता नही ये एक बहाना है या सच में कोई कारण जो हमें आगे बढ़ने से रोक देता है।

दूरियाँ क्या है? हमारे बीच का ये फ़ासला। क्या इसी को हम दूरी कहते हैं ? मुझे तो नही लगता।

कोई फ़ासला तब तक ही फ़ासला रहता है जब तक हम उसे तय नही कर लेते।

दूरियों का बहाना असल में पास ना आने की इच्छा का नाम है। इच्छा या चाहत हो तो सात समंदर पार करके मिला जा सकता है और इच्छा ना हो तो बगल वाले कमरे से उठ कर आना भी मुश्किल हो जाता है।

नदी पार करने के लिए सिर्फ़ पुल का होना जरूरी नही होता पुल पर चलना भी जरूरी होता है।

कभी कभी दो लोग इतने करीब होते हैं कि हाथ बढ़ाकर एक दूसरे को छू सकते हैं या यूँ कहें कि उनके बीच सिर्फ़ हाथ बढ़ाने भर का फ़ासला होता है पर इच्छा के अभाव में वो हाथ अनछुए रह जाते हैं।

नदी कितनी भी चौड़ी हो पुल बनाया जा सकता है और इच्छा जितनी प्रबल हो मुश्किलों का आकार उतना छोटा हो जाता है।

दूरियाँ सिर्फ़ चलकर घटाई जा सकती हैं। हाथ बढ़ाकर ही हाथ मिलाया जा सकता है।

आओ एक साथ हाथ बढ़ाएं और उँगलियों का हुक फँसाकर दूर तक जाएं।


अमित 'मौन'


P.C. : GOOGLE


Friday 11 December 2020

समझदारी

जब तक हम साथ थे तब तक तो तुमने कभी इतनी ख़ूबसूरत कविताएं नही लिखीं और जहाँ तक मैं समझती हूँ कि मुझसे पहले और मेरे बाद अभी तक कोई और ऐसा नही आया जिसे सोचकर तुम कविताएं लिखते हो (बातों ही बातों में उसने मुझसे सवाल किया)


मैं जो पिछले दस मिनट से उसे अपलक निहारे जा रहा था (अब क्योंकि पूरे एक साल बाद उसे देखा था तो मैं उसकी पेंटिंग अपनी आँखों के कैनवस पर उतार लेना चाहता था), एकदम से सकपकाते हुए बोला- जब आप किसी के रहते हुए उसे उपमाओं में बाँध लेते हो तो उसके साथ आपका रहना मुश्किल हो जाता है। खासकर तुम जैसी सतरंगी लड़की के साथ।

क्या मतलब (वो चौंक कर बोली)?

मैं (मुस्कुराते हुए)- देखो मेरा कहने का मतलब है कि अगर मैं तुम्हारे रहते हुए तुम पर कविता लिखता और तुम्हें कोई उपमा देता तो मैं अपनी कविता को सच करने के लिए तुम्हे उसी रूप में देखने की लालसा रखता। जबकि तुम तो इंद्रधनुषी रंग में डुबा कर बनाई गई हो। जब भी मिलती थी तुम्हारा एक अलग ही रंग देखने को मिलता था।

थोड़ा और समझाने की कृपा करोगे (वो अजीब सा मुँह बनाते हुए बोली)

मैं- देखो अगर मैं तुम्हे गुलाब लिखता तो तुम्हारा सूर्यमुखी वाला चेहरा मुझे पसंद नही आता और अगर तुम्हारी नमकीन बातों का बखान अपनी कविता में करता तो तुम्हारी मिश्री वाली बातें मुझे सुनने में अच्छी नही लगती। यानी कि मैं तुम्हे हर रूप, हर चेहरे, हर बात, हर व्यवहार के साथ अपनाना चाहता था, तुम्हारी किसी विशेष या मेरी मनपसंद बातों के साथ नही और कविता में हमेशा किसी ख़ूबी का बखान किया जाता है। इसीलिए मैंने तुम्हारे साथ होते हुए तुम्हें किसी कविता तक सीमित नही किया।

यार तुम्हारी ऐसी ही बड़ी बड़ी और निराली बातें मुझे बोर किया करती थी पर सच कहूँ तो इस एक साल में मैंने इन्हें बहुत मिस किया। तुम किसी के भी अशांत मन को अपनी बातों से शांत कर सकते हो लेकिन क्या है ना कि लगातार एक जैसी बातें करते रहने और सुनते रहने से ज़िंदगी बोरिंग बन जाती है और समझदारी एक उम्र के बाद ही आये तो अच्छा है। क्योंकि जो मजा बेवकूफ़ और पागल बन के जीने में है ना वो समझदारी में नही (ये कहते हुए उसके चेहरे के भाव में वो संतोष था मानो वो बताना चाह रही हो कि उसका जाने का फैसला बिल्कुल सही था)

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Monday 7 December 2020

फॉर्मूला

सड़कें हमें कहीं नही पहुँचाती
हम सड़क पर चलते हैं और गलत जगह पहुँच जाते हैं।

दुःख भी हम तक चल कर नही आते
कुछ अलग होता है और हम दुःखी हो जाते हैं।

हम किसी को याद नही करते
पर कुछ लोग याद आ जाते हैं।

भूलने का कोई फॉर्मूला नही होता
जिसे हम सोचते नही उसे हम भूल जाते हैं।

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Thursday 3 December 2020

मोरपंख

पुरानी किताबों के पन्ने पलटते हुए एक मोरपंख हाथ लगा। उसे देखते ही मन जैसे ख़ुद बख़ुद फ्लैशबैक में चला गया। ये फ़्लैशबैक शब्द मैंने पहली बार फिल्मों में सुना था और वो फ़िल्म भी शायद इस मोरपंख को देने वाले के साथ ही देखी थी।

अचानक ये मोरपंख वाला किस्सा याद आया। किसी ने कहा था किताबों में मोरपंख रखने से पढ़ा हुआ जल्दी याद हो जाता है। पर ये कोई कोर्स की किताब तो थी नहीं, फिर भी वो चाहती थी कि ये मोरपंख मैं इस किताब में रखूं (क्योंकि ये किताब उसी ने मुझे पढ़ने के लिए दी थी) तो उसने ये बोल के रखवाया था कि इस किताब की कहानी में कुछ सीख ऐसी है जो जीवन में काम आएगी और इसी सीख को याद रखने के लिए मुझे ये मोरपंख इसमें रखना होगा।

अब इसे किस्मत कहो या संयोग कि अब इस किताब की कहानी मेरी ख़ुद की कहानी हो गयी है और ये मोरपंख मुझे याद दिला रहा है कि मेरी कहानी का अंजाम याद रखने के लिए मुझे पहले ही तैयार कर दिया गया था।

मुझे समझ नही आ रहा कि कहानीकार का शुक्रिया अदा करूं, किताब देने वाले का धन्यवाद करूं या फ़िर मुझे इस कहानी का हिस्सा बनाने वाले का आभार प्रकट करूं।

वैसे मुझे लगता है कि जब आप ढेर सारी कहानियाँ पढ़ते हैं तो कभी ना कभी कोई ना कोई कहानी ऐसी जरूर होती है जिसे आप ख़ुद से जोड़ कर देखने लगते हैं या यूँ कहें वो कहानी आपको अपनी कहानी लगने लगती है।

अब जो भी हो मगर ये पुरानी किताबों को किसी और को पढ़ने के लिए देने का मेरा आईडिया फ़िर से पुराना हो गया और मैंने फ़िर से इन किताबों को वहीं रख दिया जहाँ से इन्हें निकाला था।

अमित 'मौन'


P.C. : GOOGLE


अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...