Saturday 27 April 2019

कठिन डगर पे चल के ही तू मंज़िलों को पाएगा

जो वक़्त की बिसात पे
तू हौसले बिछाएगा
फ़लक नही है दूर फिर
सितारे तोड़ लाएगा

आँधियों के वेग में
अडिग खड़ा रहा अगर
रुख़ हवाओं का तू फिर
ख़ुद ही मोड़ पाएगा

कदम को कर कठोर तू
ख़ुद को जो जलाएगा
सदमें हर सफ़र के फिर
हँस के झेल जाएगा

निराश हो के रुक नही
हताश हो के थक नही
आशा की पतंग को
स्वयं ही तू उड़ाएगा

पर्वतों को तोड़ के
जो रास्ते बनाएगा
एक दिन ज़माना भी
पीछे पीछे आएगा

निगाह तेरी लक्ष्य पे
तू मुश्किलों से डर नही
कठिन डगर पे चल के ही
तू मंज़िलों को पाएगा

अमित 'मौन'

Monday 22 April 2019

आदतन रो लेता हूँ अब...

आदतन रो लेता हूँ अब
उदासी  खूब  भाती  है
तन्हाई माशूका है  मेरी
दूर जा जाके लौट आती है

दिल के दरिया से निकल
कोई  नदी  सी  आती है
पलकों के पहरे को तोड़
लहरों  सी  बह जाती है

ख़ामोशियों के साये में
एक आह गुनगुनाती है
चीख़ कर  चुपके से ये
सुकून सा  दे  जाती है

दिन  दुश्मन  हुए  अब
रातें  बड़ा  सताती  हैं
करवटें  बदल  लेता हूँ
जब नींद नही आती है
 
वक़्त  बेवक़्त  ये  यादें
बिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ  समझ पाती हैं

अक़्सर रो ही लेता हूँ फिर
जब उदासी गले लगाती है
तन्हाई  माशूका  जो  ठहरी
दूर जा जाके  लौट आती है

दूर जा जाके  लौट आती है

अमित 'मौन'

Friday 19 April 2019

हर बंद कमरे में कोई कहानी रहती है...

सुबह ने कान में
कुछ कह दिया उधर सूरज से

झाँकने लगी है किरणें
इधर खुली खिड़कियों से

दीवारें चीख रही हैं
शायद कोई किस्सा लिए

बिखरे पड़े हैं कुछ पन्ने
इस वीरान से कमरे में

एक शख़्स दिखा था
यहाँ रात के अंधेरे में

निगल गयी तन्हाई या
बहा ले गए आँसू उसे

शिनाख़्त करते हैं
चलो ये पन्ने समेटते हैं

हादसों के हवाले से
अब ये कहानी पढ़ते हैं

तन्हाई चीख़ चीख़ कर यही बात कहती है
हर बंद कमरे में कोई कहानी रहती है...

अमित 'मौन'

Wednesday 17 April 2019

हर रात वही किस्सा, मुझमें बाकी है तेरा हिस्सा

तन्हाई के तकिये तले जलती रही
एक आस की लौ

आँसुओं की ओस में भीग रही
दो अधखुली आँखें

पलकों के दरवाजे पर दस्तक
दे रही है नींद

इंतज़ार में अपनी बारी के
थक गया है ख़्वाब

सितारों संग रात की चौकीदारी में
लगा रहा वो चाँद

और फिर हर्फ़ की मद्धम आँच में
पक गयी एक नज़्म

अमित 'मौन'

Tuesday 2 April 2019

लंक  विध्वंस  किए हनुमाना, रघुराई  अति  किए  बखाना

लंका दहन के पश्चात जब हनुमान जी श्रीराम एवं सुग्रीव जी के पास शिविर में वापस आये तो सभी ने हर्षोल्लास के साथ उनका स्वागत किया एवं उनकी वीरता का बखान करना शुरू कर दिया...श्रीराम जी ने भी उनकी भरपूर प्रशंसा की...

परंतु भक्त हनुमान जी.. जो कि अभी भी इस बात से व्यथित थे कि माता सीता किस हाल में लंका नगरी में अपने दिन काट रहीं हैं और वो चाहकर भी उन्हें वहाँ से लाने में असमर्थ रहे (हालाँकि हनुमान जी ने सीता माता से उनके साथ चलने का आग्रह किया था परंतु माता सीता ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि अब प्रभू राम स्वयं ही आकर उन्हें यहाँ से ले जाएंगे) वो इतनी प्रशंसा पाकर असहज हो गए तथा उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से अपने इस काम का श्रेय प्रभू श्रीराम की कृपा तथा बाकी लोगों (जैसे जामवंत जी, माता सीता एवं विभीषण) को दे दिया....

हनुमान जी के शब्दों को परिकल्पित करके इस रचना के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास किया है...आशा है आप सभी इन भावों से जुड़ पाएंगे......

लंक  विध्वंस  किए हनुमाना
रघुराई  अति  किए  बखाना
तुम्हरी भुजा है शक्ति अपारा
महाबली तुम  जग पहिचाना

लांघ जलधि जो पहुँचे लंका
करेउ  दूर  सीता  की  शंका
कूद  फांद  वाटिका  उजारी
चहुँ  दिशा  में  तुम्हरा डंका

हनुमान उवाच:-

नाथ सकल ये कृपा तुम्हारी
मैं  सेवक  सेवा   ही  प्यारी
आज्ञा पाई सिया सुधि लाऊं
पालन  को  जाऊं  बलिहारी

हुई  मंत्रणा  पार  कोउ  जाए
लांघ जलधि कोउ पता लगाए
कथा दिवाकर बाल्यकाल की
जामवंत  तब  स्मरण  कराए

आपन शक्ति कबहुँ ना जाना
वानर साधारण  सा हनुमाना
धन्यवाद   श्री  जामवंत  का
सेवक की शक्ति को पहिचाना
 
लंका पहुँच हुआ  दुःख भारी
दिखी कहीं ना सीता महतारी
पूर्ण  दिवस  थी  छानी लंका
मन  ही  मन  में  मानी  हारी

कृपा प्रभू अद्भुत दिखलाए
राम नाम की  ध्वनि सुनाए
लंका में सुमिरै नाम तिहारा
भक्त विभीषण प्रभू मिलाए

जो मिलते ना रावण के भ्राता
उस  स्थल  को  ढूंढ़  ना पाता
मिलती कैसे 'अशोक वाटिका'
वियोग में थी जहाँ सीता माता

पहुँच वाटिका काज ये कीन्हा
चूड़ामड़ी  मात   को   दीन्हा
भेंट दिए  प्रभू  स्वयं आप  ही
तुम्हरी कृपा मात मोहि चीन्हा

मात की आज्ञा से फल खाए
सकल असुर तब पाछे आए
मात  कृपा   से  शक्ति   पाई
मारी   लात   धाम   पहुँचाए

सुनी  खबर  रावण  खिसियाया
अक्षय कुमार था युद्ध को आया
आशीष  मात  का  कृपा  ऐसी
मुष्टि  प्रहार  से   प्राण  गंवाया

अति क्रोधित रावण खिसियाना
पठएसि   मेघनाद   बलवाना
तुम्हरी कृपा  समर्पण कीन्हा
शस्त्र वो  नागपाश पहिचाना

कर विमर्श ये लंकापति कीन्हा
दूत समझ मोहे मृत्यु ना दीन्हा
पूँछ  मोरे  फिर  अनल लगाए
प्रतिशोध पुत्र  मृत्यु का लीन्हा
 
वानर  ने  तब  पूँछ बढ़ाई
लंका में  फिर आग लगाई
पूर्ण काज फिर आपन कीन्हा
पूँछ  मोरी की  अनल बुझाई

कृपा आपकी जो कर पाया
लंका से  माता  सुधि लाया
राम नाम  की  महिमा ऐसी
सहयोग सभी का मैंने पाया

अब  विनती  यह  प्रभू  हमारी
रावण  संहार  की  करें  तैयारी
दशरथ नंदन की आस में व्याकुल
राह   तके  हैं   जनक   दुलारी

और इस प्रकार भक्त हनुमान जी ने बड़ी सरलता से सारा श्रेय अपने प्रभू को दे दिया और साथ ही उनसे माता सीता को शीघ्र वापस लाने की विनती की.....

अमित 'मौन'

सुधि- खबर
मंत्रणा- बातचीत
जलधि- सागर
दिवाकर- सूरज
सकल- सभी/सम्पूर्ण
खिसियाना- क्रोधित होना
मुष्टि- मुट्ठी/घूंसा
अनल- अग्नि/आग

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...