ये उम्र बिखरती जाती है
मैं आस लगाए रखता हूँ
ना जाने कब एक आहट हो
मैं नैन बिछाए रखता हूँ
यूँ तन्हा यार रहूँ कब तक
ये दर्द, ये टीस सहूँ कब तक
इन सीलन भरी हवाओं से
ये दुखड़े यार कहूँ कब तक
अब इंतज़ार की घड़ियों ने भी
वक़्त बताना छोड़ दिया
रस्ता तकते इस ऐनक को
अश्क़ों ने बह कर तोड़ दिया
माना कि तुम में और मुझ में
अब भी मीलों की दूरी है
पर रात की सुबह तो निश्चित है
हर दुःख का अंत जरूरी है
अमित 'मौन'
Welcome to my Blog. I write what i saw & learn from life. Because: जो पढ़ा किताबों में, अमल में लाऊं भी तो क्या, ये जिंदगी है जनाब, फलसफ़ों से नही चलती.... Suggestions/appreciations in comment box are always welcomed. You can also read my latest writing at the following link: www.yourquote.in/amitmaun
Wednesday 29 September 2021
हर दुःख का अंत जरूरी है
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अधूरी कविता
इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...
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ये दुनिया अचानक इतनी बड़ी हो गयी है कि तुम्हारी ख़बर तक नही मिलती हर अख़बार, सभी चिट्ठी, सारे संदेश कहीं भी तुम्हारी ख़ुशबू तक नही है अब दिन म...
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