Monday 25 March 2019

मैं प्रेम में हूँ

रेगिस्तान ढक दिए जाएंगे समंदर के पानी से
मछलियाँ साहिल पे गुफा बना कर रहने लगेंगी
तितलियाँ पेड़ों पर अपने घोसलें बना लेंगी
सारे पक्षी मिलकर एक नया शहर बसा लेंगे
नदियाँ पहाड़ों से नीचे आना बंद कर देंगी
जब इंसान सिर्फ़ चाँद पर रहा करेंगे

मैं सूरज से एक घोड़ा माँग लूँगा और तुम्हे लेकर मंगल ग्रह पर चला जाऊंगा....
सच बताऊं तो मंगल बिल्कुल तुम्हारी तरह दिखता है....सुर्ख लाल..

तुम कहती हो ना कि प्रेम में सब संभव है..तो..मेरी बातों पर यकीन करो.....

क्योंकि मैं प्रेम में हूँ...

मेरी आँखों मे झाँक कर अपनी दुनिया देखी है जानां... कभी कोशिश करना..सच कहता हूँ कल्पना कम पड़ जाएगी.....

अमित 'मौन'

प्रेम की परीक्षा..

कोई प्रेमी जब चाँद को ज़मीन पर ले आएगा
प्रेमिकाएं सितारों को अपने जूड़े में बांधेंगी
शराबी मयखाने ना जाकर आँखों से नशा करेंगे
आँसुओं से किसी अंधेरे कमरे में समंदर बहेगा
किसी के हँसने पर खिल उठेंगे सभी मुरझाए फूल
गालों में पड़ते गड्ढे भरने को जब होने लगेगी बारिश
फिर चुनरी लहराने पर पूरब से हवाएं चल पड़ेंगी

ठीक उसी पल तुम मेरा नाम लेना और फिर हिचकियाँ मुझे तुम्हारा पैगाम देंगी....

यकीन मानो ठीक उसी पल मैं अपना दिल अपनी दायीं हथेली पर निकाल कर ले आऊंगा और पास हो जाऊँगा तुम्हारे प्रेम की परीक्षा में...

पर एक वादा तुम भी करो...समय के उस चक्र तक तुम मेरा इंतज़ार करोगी....बोलो करोगी ना?

अमित 'मौन'

Monday 18 March 2019

आशिक़ को इस तरह बेचारा नही करते

एक आशिक़ को इस तरह बेचारा नही करते
बाद  जुदाई  के  प्यार  से  पुकारा नही करते

कुछ  तो  खौफ़  ख़ुदा  का  तुम  भी रखो
करके  वादे  वफ़ा  के  नकारा नही  करते

चल  पड़े  हो  साथ  जो  याद  इतना  रखो
बीच सफ़र में किसी को बेसहारा नही करते

एक दफ़ा कह जो देते की वापस आ नही सकते
यूँ  सारी  उम्र  इंतज़ार  हम  तुम्हारा  नही करते

दिल्लगी नही  ये बस  ग़म  छुपाने का  ज़रिया है
वो  पहली  दफ़े  वाला  इश्क़  दोबारा नही  करते

अटक अटक के चल रही है साँसें देखो
अधमरे को और ज्यादा मारा नही करते

अमित 'मौन'

Sunday 10 March 2019

मैं तुम्हे रोकना चाहता था..

मैं तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं तुम्हे रोकना चाहता था

तुम कल कल करती एक नदी की मानिंद बह जाना चाहती थी अन्जान दिशा में जहाँ समंदर घात लगाए बैठा था तुम्हे ख़ुद में समाहित कर तुम्हारा अस्तित्व मिटाने को, मैं पर्वत बन तुम्हे सदा के लिए अपनी गोद देना चाहता था..

मैं तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं तुम्हे रोकना चाहता था

तुम पेड़ की उस पत्ती की मानिंद थी जो दूर तक दिखते उस हरे भरे बाग के आख़िरी छोर तक जाना चाहती थी, तुम्हे उड़ना था उस हवा के साथ जो तुम्हे कहीं दूर ले जाकर अकेला छोड़ने की फ़िराक में थी, मैं उस पेड़ की डाली बन तुम्हारा हाथ थामना चाहता था

मैं तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं तुम्हे रोकना चाहता था

तुम उस कली की मानिंद थी जिसे जल्दी से ग़ुलाब बन किसी प्रेमी को दिया जाने वाला वो तोहफ़ा होना था जिसे कुछ पलों के बाद धरती की गोद या किसी किताब में खो जाना था, मैं बस एक कांटा बन तुम्हे सुरक्षित रखना चाहता था

मैं तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं तुम्हे रोकना चाहता था

तुम उस मुसाफ़िर की मानिंद थी जिसे सीधी सपाट सड़क पर तेज भागते हुए जल्दी से मंज़िल पानी थी, मैं उसी सफ़र में पथरीले गड्ढों वाले रास्ते चाहता था, मैं तुम्हे भटकाना नही चाहता था, मैं उस सफ़र को मंज़िल पाने के बाद भी याद रखना चाहता था, मैं उस दुर्गम सफ़र को तुम्हारे साथ तय करना चाहता था

मैं तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं तुम्हे रोकना चाहता था

तुम आख़िरी अलविदा के वक़्त गौरैया के बच्चे की तरह थी, जो पहली बार में ही उड़ जाना चाहती थी दूर उस नीले आकाश के अनंत में, और मैं घोसले की तरह तुम्हारा आशियाना बनकर तुम्हे वापस इसी जगह मिलना चाहता था

मैं तुम्हारे पैरों की बेड़ियाँ नही बनना चाहता था, मैं बस चाहता था की उड़ते वक़्त तुम्हारे हाथों में प्रेम की डोर का एक सिरा हमेशा रहे ताकि वो सिरा तुम्हे कहीं दूर ना जाने दे....इतनी दूर जहाँ से वापस आना पहले मुश्किल और फिर नामुमकिन हो जाए.....

मैं कभी भी तुम्हे बाँधना नही चाहता था
मैं हमेशा तुम्हे रोकना चाहता था.....

अमित 'मौन'

Thursday 7 March 2019

हमारा अलग होना ज्यादा मुश्किल है....

प्रेम पर रची गयी हर कविता में मैं तुम्हे पढ़ता हूँ

विरह के हृदय भेदी शब्दों को महसूस करता हूँ

परिस्थितियों को परिभाषित करते लेख मुझे अपने
से लगते हैं

और संभावनाओं को तलाशती मेरी सोच में सिर्फ
तुम बसती हो

तुम मेरे जीवन पर लिखी गयी वो क़िताब हो जिसके हर पन्ने पर तुम्हारी स्मृतियाँ दर्ज हैं और ये क़िताब मेरे ज़ेहन की सबसे ऊपर वाली अलमारी पर सबसे आगे रखी गयी है और ना चाहते हुए भी मुझे हर रोज इसका कवर देखना पड़ता है, क्योंकि अगली क़िताब तक पहुंचने के लिए मुझे पहली क़िताब को छूना या हटाना पड़ता है.....

सीधे और सरल शब्दों में इसका निष्कर्ष ये है कि हमारे रास्ते भले ही अलग हो गए हों पर हमारा अलग होना उससे ज्यादा मुश्किल भरा है जितना हमारा साथ चलना कठिन था...

अमित 'मौन'

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...