Thursday 30 July 2020

प्रेमिका

कुछ सोचते सोचते 
अचानक मुस्कुरा दोगी
तो पागल लगोगी।

नींद में सपने से डर कर
अचानक उठ जाओगी
तो बीमार दिखोगी।

काम-काज छोड़ कर
खिड़की पर टिकी रहोगी
तो कामचोर बनोगी।

कोई भी बहाना बनाकर
सहेलियों से अलग चलोगी
तो पक्का झूठी लगोगी।

किताबों में छुपाकर
किसी के संदेश रखोगी
कितनी डरपोक लगोगी

कपड़े लाने छत पर जाकर
घंटों बैठी बात करोगी
ऐसे तुम बेबाक बनोगी।

इतना सब करने के बाद भी
हर पल जब बेचैन रहोगी
तब जाकर प्रेमिका बनोगी।

अमित 'मौन'

Tuesday 28 July 2020

समय

शाम के 5 बज चुके हैं। मैं अभी भी बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ा हुआ जाने क्या सोच रहा हूँ। घड़ी के टिक टिक का शोर मानों हथौड़ा बनकर मेरे सिर पर वार कर रहा है। हर पल एक नया ख़्याल मन के दरवाजे को धक्का मारता हुआ मेरे दिमाग़ में घुसता आ रहा है। मेरी सोच भी एक ख़्याल से होती हुई दूसरी ख़्याल की गली में घुसती जा रही है। मैं सोच के शहर की जाने कौन सी गली में भटक रहा हूँ।

मैंने जाने कब से इस कमरे की चारदीवारी में ख़ुद को संभाल कर रखा हुआ है। मेरी रफ़्तार, मेरी दिनचर्या, मेरा जीवन सब मानों थम सा गया है। बस एक वक़्त है जो थमने का नाम नही ले रहा। सेकंड, मिनट, घंटा और फ़िर दिन। ये वक़्त ही है जिसने अपने कई नाम रखे हुए हैं और ये सभी बिना रुके बस चलते जा रहे हैं।

इसे कोई मतलब नही मेरे जीवन में क्या चल रहा है, इसे कोई मतलब नही मैं क्या सोच रहा हूँ, इसे कोई मतलब नही कि मैं क्या चाहता हूँ। बल्कि इसे तो किसी से भी कोई मतलब नही कि कोई क्या चाहता है। ये तो बस दूर कर रहा है  मुझे, हमें, हम सबको, उस लम्हे से जिस लम्हे को हम सहेजना चाहते हैं, उस लम्हे को जिसमें रुक कर हम उसे जी भरकर महसूस करना चाहते हैं।

पर इसकी एक अच्छी बात ये भी है कि ये उस पल को भी हमसे दूर कर देता है जिसे हम याद नही रखना चाहते, जिसे हम अपने ज़हन में भी नही आने देना चाहते।

वक़्त ईश्वर की सबसे ईमानदार रचना है। ये अच्छे-बुरे हर लम्हे के साथ समान व्यवहार करता है। ये किसी को ठहरने नही देता। ये सबको ही दूर ले जाता है।

अमित 'मौन'

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...