Wednesday 28 February 2018

चटपटी सी प्रेम कहानी- chatpati si prem kahani


दूर जाऊं तो मन ही मन जाने क्या बड़बड़ाती थी
अगर पास भी आऊं तो हड़बड़ा के भाग जाती थी

वो खुद तो मेरे आंगन में रोज गुटरगूँ कर जाती थी
चौबारे पे खड़ी मेरी कुकड़ू कूँ नही सुन पाती थी

एक दिन ना दिखूँ तो जाने कितना छटपटाती थी
फिर एकदम से आ जाऊं तो सकपका जाती थी

अब ऐसे मैं क्या बताऊँ वो कितना बकबकाती थी
बस इतना समझ लो उसकी बातें बहुत पकाती थी

बात सच है उसकी सहेलियां मुझे बड़ा डराती थी
मधुमखियों की तरह ही एक साथ भिनभिनाती थी

खुली आँखों से ही जाने कितने सपने बुन जाती थी
अकेले ही बैठे बैठे जाने कौन सा गीत गुनगुनाती थी

मुझे उकसाने के लिये ही वो अक्सर मुझे चिढ़ाती थी
मैं तो घबराता था पर वो बेझिझक प्यार जताती थी

आज वो नही पर उसकी यादें मुझे बड़ा सताती हैं
वो टूट के चाहा करती थी सहेलियां मुझे बताती हैं

वो उसकी बातें अब भी मेरे कानों में कुलबुलाती हैं
उसकी बदमाशियां आज भी मुझे बड़ा गुदगुदाती है

वो अब भी मेरे ख्वाबों में अठखेलियाँ करने आती है
मेरी सुनती नही बस अपनी ही मनमर्जियां चलाती है

आज भी अगर किसी शाम मेरी आँख फड़फड़ाती है
ये मिन्नतें मांगती हैं उसे देखने को और गिड़गिड़ाती है

वैसे तो अब भी मेरे दिन कटते हैं शामें गुजर जाती है
पर मैं उसे कैसे भुलाऊँ वो अब ज्यादा याद आती है

Friday 23 February 2018

चलते रहना है- chalte rahna hai

कभी ख़त्म ना हो ये सफर बस चलते रहना है
गिर के फिर उठना है मगर यूँ ही बढ़ते रहना है

मिलते जायेंगे तजुर्बे नये गुजरते वक़्त के साथ
आप बीती से चुन के नया फ़लसफ़ा लिखना है

गुम अंधेरों में खुद को तलाश करता हूँ अब तक
बाती है हाथ में अभी उम्मीद का दिया जलना है

वक़्त नही पास मेरे अभी कुछ और इंतज़ार करो
बांटनी हैं खुशियां अभी मुझे दर्द अलग रखना है

माटी के खिलौने सा खेला और तोड़ा है सब ने
कठपुतली सा बहुत रहा अब तो इंसान बनना है

हाय तौबा मची यहाँ ना जाने क्यों हर बाजार में
'मौन' हूँ इस वक़्त मगर अभी बहुत कुछ कहना है

Sunday 18 February 2018

इश्क़ छुपता नहीं- ishq chhupta nahi

कब तलक यूँ राज-ए-उल्फ़त ना बतायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही कदम लड़खड़ाते है यहाँ

कब तलक यूँ राज-ए-गुलशन छुपायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही अब गुल खिलते हैं यहाँ

कब तलक यूँ आईने में देख मुस्कुरायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही होंठ सिल जाते हैं यहाँ

कब तलक यूँ धड़कनों को रोक पायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही सांसें तेज़ हो जाती हैं यहाँ

कब तलक यूँ आँखें बंद कर बहाने बनायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही अब नींदें उड़ जाती हैं यहाँ

दर्द से रिश्ता- dard se rishta

दर्द से अपना रिश्ता बड़ा पुराना है
जाके लौट आयेगा ये मेरा दीवाना है

सहर होते ही परिंदे उड़ गये थे जो
शब में उन्हें शज़र पे लौट आना है
 
ये धूप जो निकली है मेरी छत पे
कुछ देर में आफताब डूब जाना है
 
सहम जाता हूँ तूफ़ान के नाम से
सूखी लकड़ी का मेरा आशियाना है

रेत पे क़दमों के निशान जैसा मैं
सैलाब आते ही इन्हें मिट जाना है

नज़रंदाज़ कर दो मेरी इन आहों को
बस कुछ चीखें और 'मौन' हो जाना है

Sunday 11 February 2018

मोहब्बत का शुरू सफर ना हुआ- mohabbat ka shuru safar na hua

मोहब्बत का शुरू सफर ना हुआ
वो कभी मेरा हमसफ़र ना हुआ
क्यों करें शिक़वे उसकी बेवफाई के
जब दिल में उसके मेरा बसर ना हुआ
कुछ यूँ रहा अपना अंजाम-ए-मोहब्बत
जो पहले कभी किसी का हसर ना हुआ
हर दफ़ा हाज़िर रहे उनके इशारे पे
पर वो कभी हमे मयस्सर ना हुआ
बस ग़ुम रहा इन अंधेरों में इश्क मेरा
एक शब ऐसी जिसका सहर ना हुआ
शायद इसलिये हो गया हूँ 'मौन' अब
मगरूर पे जज्बातों का असर ना हुआ

Saturday 3 February 2018

Teri yaad aaye- तेरी याद आये


नग़मे इश्क़ के कोई गाये तो तेरी याद आये
जिक्र मोहब्बत का जो आये तो तेरी याद आये

यूँ तो हर पेड़ पे डालें हज़ारों है निकली
टूट के कोई पत्ता जो गिर जाये तो तेरी याद आये

कितने फूलों से गुलशन है ये बगिया मेरी
भंवरा इनपे जो कोई मंडराये तो तेरी याद आये

चन्दन सी महक रहे इस बहती पुरवाई में
झोंका हवा का मुझसे टकराये तो तेरी याद आये

शीतल सी धारा बहे अपनी ही मस्ती में यहाँ
मोड़ पे बल खाये जो ये नदिया तो तेरी याद आये

शांत जो ये है सागर कितनी गहराई लिये
शोर करती लहरें जो गोते लगाये तो तेरी याद आये

सुबह का सूरज जो निकला है रौशनी लिये
ये किरणें हर ओर बिखर जाये तो तेरी याद आये

'मौन' बैठा है ये चाँद दामन में सितारे लिये
टूटता कोई तारा जो दिख जाये तो तेरी याद आये

Thursday 1 February 2018

Wo mujhse milne atey hai- वो मुझसे मिलने आते हैं

रात होते ही फलक पे सितारे जगमगाते हैं
वो चुपके से दबे पांव मुझसे मिलने आते हैं

याद रहे बस नाम उनका भूल के जमाने को
वो चुनरी को इस तरह मेरे चेहरे पे गिराते हैं

सौ गम और हज़ार ज़ख़्म हो चाहे दुनिया के
हर दर्द भूल जाये कुछ इस तरह गुदगुदाते हैं

डूब जाये ये कायनात तो हम नाचीज़ क्या हैं
इतनी मोहब्बत वो दामन में भर के लाते हैं

तिश्नगी कम ना होने पाये चाहत की मुझमे
प्यास बढाकर मेरी फिर वो मय बन जाते हैं

सख़्त हिदायत है हमे खुद पे काबू रखने की
रोक के हमको मगर वो खुद ही बहक जाते हैं

बयां करने को दास्तान-ए-इश्क़ लब्ज़ ना मिलें
वो यूँ हक़ मुझपे जताते हैं कि 'मौन' कर जाते हैं

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...