Friday, 8 September 2023

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है

क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था

झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं

और कविता है कि हर पंक्ति के बाद अधूरी लगती है


दुनिया ईर्ष्या में सम्मोहित होकर दानव हो गई

पर तुमने हृदय को लक्ष्मण रेखा में सुरक्षित रखा

इन दो आँखों से कोई कितना देख पाता

तुमने क्या देखा कि आँखें बंद कर ली


कुछ खोजना मतलब कुछ खो जाने की चिंता करना है

मैं तुम में खुशियाँ ढूंढ़ता रहा और तुम ख़ुशियों में मुझे

फ़िर ना ही तुम मिली और ना ही ख़ुशियाँ


मेरा जीवन एक कैनवस था

और तुम्हारे हाथों में रंगों की बाल्टियाँ

मुझे प्रेम में फूल होना था

और तुम्हें तितलियों का जीवन जीना था


मेरा वो हर सपना अजीज था जिसमें तुम थी

पर हर नींद को एक सुबह से मिलना था 

अब तुमने जो बताया उससे जीवन जीता हूँ

और तुमने जो सिखाया उससे कविता लिखता हूँ


अब जीवन एक कविता है और कविता में पूरा जीवन...


अमित 'मौन'


PC : Google


Sunday, 9 July 2023

आख़िरी बार

हम मिले और मुस्कुराए
ये जानते हुए भी ये आख़िरी बार है
सूखे होंठों पर मुस्कान उकेरते हुए
कितनी सहजता से गले लगकर
ख़ुश रहने की दुआएं निकाली गयी

हमने ये तय कर लिया था कि
कंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर 
जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती

कितना आसान हो जाता है 
अपनी आत्मा को मारना
जब समय साथ ना हो
और कितना मुश्किल होता है
गालों को सुखा रखना
जब खामोशियाँ फूटने को हों

कुछ अंत सुखद नही होते
पर उन्हें दुःख का नाम नही दिया जाता
कुछ बातें अक्सर अधूरी रहती हैं
और उन बातों को भुलाया नही जाता ।

अमित 'मौन'

PC : Google

Saturday, 1 April 2023

जमापूँजी

 लम्हों की लड़ी है ये जीवन

और तुम यादों का अनोखा संसार 

कुछ तो अलग है तुम्हारी छुअन में

जो लहू को ताजा कर जाता है


कोई दूसरी दुनिया है तुम्हारा साथ

जहाँ हँसने से उजाला होता है

तुम्हारे होने भर से समय रुक जाता है

घड़ियों की चाल बदल सकती हो तुम


जादू कोई कला नहीं एक सोच भर है

मुझे हँसा कर करिश्मों में यकीन बढ़ाती हो

उदासियाँ  श्राप  से  मिलती  होंगी

और आशीर्वाद  का  फल  हो  तुम


हवाएं मुट्ठी में भर कर साँसें बांटती हो

ईश्वर की  भेजी एक चिट्ठी हो तुम

पहचान छुपाता बहुरूपिया हूँ मैं

और जीवन की जमापूँजी बस तुम


अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Friday, 17 March 2023

जीवन


क्या हो जो जीवन किसी पटरी पर चले

क्यों ना सुख दुःख निर्धारित मात्रा में मिले


संघर्ष इतना कि साहस जवाब ना दे

और आराम इतना कि शरीर बोझ ना बने


ज्ञान इतना कि सही गलत में फ़र्क लगे

अज्ञानता इतनी की जीवों में समानता दिखे


मुस्कान ऐसी की मन में कटुता ना रहे

और आँसू ऐसे की आँखों से निश्छलता बहे


सुख इतना कि मन में बस भक्ति जगे

और दुःख इतना कि जीवन श्राप ना लगे।


अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE



Monday, 26 December 2022

अलग दुनिया

तुम थी तो सब कितना आसान लगता था। ये दुनिया तुम्हारे इर्द गिर्द सिमटी हुई थी। समंदर की लहरें तुम्हारी आँखों में हिचकोले मारती और पुतली बने आसमान को भिगोया करती थी। केशों में हवाएं कैद करके तुम उंगलियों से तूफान की दिशा तय करती थी। बारिशें तुम्हारी मुस्कुराहट से मिलने आया करती थीं और पेड़ तुम्हारे लिए हरियाली का तोहफ़ा लाया करते थे। हर रास्ता तुमसे होकर गुजरता और हर सफ़र की मंज़िल तुम थी। मैं अनंत संभावनाओं के उस शिखर पर था जहाँ सब कुछ बस पलकें झपकाने जितना आसान था।


पर अब लगता है मैं किसी और दुनिया में हूँ और ये दुनिया इतनी बड़ी है कि हर रोज जाने कितने लोग एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं और फ़िर कभी नही मिल पाते। ख़ुशियों ने रूठकर ख़ुदकुशी कर ली है और पानी बादलों को छोड़कर मेरी आँखों मे बसता है। मैं अनहोनी की आशंकाओं से घिरा हुआ हूँ और वो एक मुमकिन रास्ता ढूँढ़ रहा हूँ जिसकी मंज़िल तुम हो।

मैं दो दुनियाओं के बीच फँसकर सपने और हकीक़त के बीच का फर्क तलाश रहा हूँ और तुम शायद कहीं दूर मेरे इंतज़ार में जीवन के फूलों को मुरझाते हुए देख रही हो।

अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE


Thursday, 15 December 2022

उदासी

जीवन की तमाम व्यस्तताओं के बीच अपनी उदासी के लिए समय निकाल लेता हूँ। क्या छूटा उसके बारे में सोचते हुए बस समेटे हुए को देख लेता हूँ। कितने सुख थे जो मेरे हो सकते थे, कितने दुःख हैं जिनसे बच सकता था। अगर सहने की कोई सरहद होती तो बहुत पहले थक चुका होता।


सच कहूँ तो जीवन में अंधेरों ने बड़ा सहारा दिया क्योंकि उजालों में मुस्कुराने की मजबूरी कंधों पर बोझ सी जान पड़ती है। ऐसे में रातें सहारा बन के आती हैं और एक सुकून का कोना सारा दुःख पी जाता है।

बहुत कुछ है जिसे भूल जाना चाहता हूँ पर याद रखने की बीमारी ऐसी जिसका कोई इलाज नही है। जीवन में अगर आगे बढ़ना हो तो पीछे नही देखना चाहिए पर मन है कि पुरानी संदूक से आधे जले हुए ख़त निकाल ही लाता है। मन चंचल है ये सब जानते हैं पर मन निर्दयी भी है ये कोई नही जानता। मन कब क्या सोचे और मन की कोई सोच कब मन को ही व्यथित कर दे ये मन भी नही जानता।

ये बात पूरी तरह सच है कि ख़ुद से मिलने का सही समय अकेलापन है, ख़ुद को जानने का सही वक़्त उदासी है और ख़ुद को खोजने के लिए दुःखों से मिलना जरूरी है।


अमित 'मौन'

P.C.: GOOGLE


Sunday, 26 December 2021

फ़िर मिलेंगे

इतवार की फुरसत भरी शाम, गर्मियों को धकेल कर विदा करती हुई दशहरे के बाद चलने वाली शीतल हवाएं, ऊपर ऊपर से खुश दिखते मगर एक दूसरे के लिए अजनबी लोगों की भीड़ और साथ ही इन सबकी आवाज़ों को दबाती हई जोर मारती समंदर की लहरें। किसी व्यस्त शहर में पड़ने वाला समंदर का किनारा फुरसत वाली शामों में भी कितना कुछ अपने अंदर समेटे रहता है।


इन सबके बीच मगर इनसे छुपता हुआ एक अनोखा कोना जहाँ बैठ कर मैं इस पल अलग अलग रंग के बादलों से ढका हुआ आसमान निहार रहा हूँ। यही वो जगह है जहाँ बैठे बैठे हम दोनों ने ना जाने कितनी ही शामों को रात के आँचल में छुपते हुए देखा था।

तुम अक़्सर यहाँ बैठ कर पेंटिंग्स बनाया करती थी और मुझे ना चाहते हुए भी 'वाह कितनी सुंदर बनाई है' बोलना पड़ता था। सच कहूँ तो मुझे पेंटिंग्स में जरा भी दिलचस्पी नही थी पर उन्हें बनाते हुए तुम्हारे चेहरे पर जो चमक आती थी वो मेरी आँखों को रोशन कर जाती थी। वैसे तुम्हारी एक बात जिससे मैं हमेशा ताल्लुक रखता था वो ये कि पूरे चौबीस घंटे के दिन में एक शाम ही ऐसी होती है जो सुकून देती है और इस पर ये तर्क भी अच्छा कि सुबह नया जोश देती है,दोपहर थकान देती है और रात उदासी देती है। एक शाम ही है जो सुकून देती है और उस पर भी अगर छुट्टी वाली शाम हो तो सोने पे सुहागा।

तुम्हें शामें कितनी ज्यादा पसंद थी ये मैं इस बात से ही जान गया था जब तुमने कहा था कि अगर कभी प्रलय आए और दुनिया ख़त्म होने लगे तो वो शाम का समय हो ताकि हर कोई रंग बदलते हुए बादलों का अनोखा मंज़र देखते हुए ऑंखें बंद करे। सच बताऊँ अगर मुझे उस वक़्त जरा भी अंदाज़ा होता कि ये प्रलय तुम्हे लेने आएगी और ये दुनिया मेरे लिए ख़त्म होगी तो मैं तुम्हारे होंठों को उसी वक्त ये बात पूरी करने से रोक लेता। पर ना मैं तुम्हारी बात पूरी होने से रोक पाया और ना ही तुम्हे जाने से रोक पाया।

मुझे अक़्सर अपने किए हुए एक वादे पर अफ़सोस रहता है जो मैंने तुमसे किया था। मैंने ये वादा तो कर लिया कि मैं कभी भी किसी के सामने उदास नही रहूँगा क्योंकि तुम्हारे मुताबिक़ मेरा उदास चेहरा बिल्कुल अच्छा नही लगता। मुझे क्या मालूम था कि अब उदासी मेरे जीवन में हमेशा के लिए शामिल होने वाली है और फ़िर भी मुझे उसे सबसे छुपा कर रखना पड़ेगा। पर देखो यहाँ कोई नही है और यहाँ मैं उदास होने के साथ साथ जी भर कर रो भी सकता हूँ। मैंने अक्सर समंदर के किनारे लोगों को उदास बैठे देखा है और मुझे लगता है कि उनके आँसुओं के नमक से ही इस समंदर का पानी खारा हुआ है।

तुम्हे पूरा यकीन था कि अच्छे लोग जब हमें छोड़ कर जाते हैं तो वो तारे बन जाते हैं और तुम्हारे उसी यकीन को तुम्हारा इशारा मानकर मैं अब भी शाम को रात होते हुए देखता हूँ। पर अब आसमान का रंग बदलते हुए नही बल्कि तुम्हे तारा बनकर जगमगाते हुए देखता हूँ। अब जब भी किन्ही दो तारों को एक साथ देखता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखें मुझे ऊपर से देख रही हैं और मैं अनायास ही शरमा जाता हूँ। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अच्छा दिखूं वरना कहीं तुम्हे इस बात का दुःख ना हो कि तुम्हारे बिना मैंने अपना क्या हाल बना रखा है।

और जब तुम अपनी रोशनी को थोड़ा और तेज करती हो मैं समझ जाता हूँ कि आज तुम भी मुझे देख कर ख़ुश हो। वैसे तारा बनकर तुमने बहुत अच्छा किया। अब थोड़ी दूर से ही सही कम से कम हम एक दूसरे को देख तो सकते हैं।

फ़िर मिलेंगे के वादे के साथ अब मैं चलता हूँ और सदा चमकने के वादे के साथ तुम भी मुझे विदा करो।

हे समंदर तुम्हारे खारेपन को बढ़ाने के लिए मुझे क्षमा करना।

अमित 'मौन'


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Sunday, 19 December 2021

उम्मीद

भीतर एक अजीब सा सन्नाटा है इन दिनों। जैसे मन किसी कोठरी में कैद हो और अँधेरा इतना कि हवाएं भी रास्ता ना खोज पाएं। हाल कुछ ऐसा है कि चीखने की इच्छा है मगर आवाज़ नही। रोने को आँखें है मगर आँसू नही। कहने को बहुत कुछ है पर सुनने को कोई नही और जीने को सांसें हैं मगर जीवन नही।

अक्सर ऐसा होता है कि जब हम बहुत कुछ खो देते हैं तब हमारे अंदर पाने की लालसा मर जाती है। ये समय ऐसा होता है कि हम जीने का मकसद ही खो देते हैं। लड़ने की हिम्मत होते हुए भी हम हथियार जमीन पर रख देते हैं। लड़ने का मजा तब तक ही है जब तक जीतने की जिद जिंदा हो। पर जब मन हार मान ले तो शरीर को युद्ध में भेजने का कोई फ़ायदा नही।

मृतक सिर्फ वो नही जिसकी साँसें ख़त्म हो गयी हों। मरा हुआ वो भी है जिसके जीवन का कोई उद्देश्य ना हो।

सुना है जब शरीर बोझ बन जाए तो साँसें बहुत जल्दी साथ छोड़ देती हैं। पर कुछ तो है जो ये डोर टूटने नही दे रहा और मैंने उस कुछ को उम्मीद का नाम दे दिया है।

क्योंकि एक उम्मीद ही है जो इंतज़ार की उम्र लम्बी कर सकती है।


अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


Wednesday, 15 December 2021

अंदाज़ा

जाते हुए तुमने कहा था कि मेरी आँखों से सिर्फ़ दो बूँदें ही तो छलकी हैं इसका मतलब मुझे बिछड़ने का उतना दुःख नही है जितना तुम्हे है। काश मैं तुम्हें ये बता पाता कि हाथ कटने पर ख़ून की एक बूँद गिरे या पूरी धार बहे दर्द उतना ही होता है।


जीवन कितना आसान होता अगर आँसू रोकने और दर्द सहने की क्षमता हर इंसान में बराबर होती। हर कोई एक जैसा चीखता और हर कोई उतना ही रोता। पर अफ़सोस कि जीवन ऐसा नही है।

कभी कभी मैं भी आख़िरी बार रोना चाहता हूँ और इतना रोना चाहता हूँ कि आँसुओं की धार में सारे दुःख, दर्द, तकलीफ़ और यादें सब बह जाएं। मैं आँसुओं के ख़त्म हो जाने तक रोते रहना चाहता हूँ। पर मैं जानता हूँ आख़िरी बार रोने जैसा कुछ नही होता। एक बार रो लेने के बाद दोबारा रोना न आए ऐसा नही हो सकता। आँसू कभी सूखते नही बस जम जाते हैं और यादों की गर्मी मिलते ही फ़िर बहने लगते हैं।

जीवन कितना आसान होता अगर हम भावनाओं पर नियंत्रण रख सकते। किसी के पास आने और किसी के दूर जाने पर हमें क्या और कितना सोचना है इन सब पर हम क़ाबू रख पाते तो कितना अच्छा होता। पर जो अपने मन मुताबिक चले वो जीवन कैसा।

ख़ैर, मेरे मन की चंचलता ख़त्म हो गयी है, इच्छाओं ने आत्महत्या कर ली है और नींदों ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। इन सब के बावजूद मेरी पलकें बाँध बनकर खारे पानी को रोके हुए हैं।

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जिसका हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगाते हैं पर सच्चाई उससे बिल्कुल अलग होती है। ठीक वैसे ही जैसे तुमने मेरे दुःख का अंदाज़ा लगाया था।

मैं कभी कभी सोचता हूँ कि काश कुछ ऐसा अविष्कार हो जाए जिससे हम दुःख को नाप सकें और सुख को बाँध सकें। फ़िर शायद दुनिया को जीने की ज्यादा वजहें मिल पाएंगी।

अमित 'मौन'


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Saturday, 2 October 2021

साथ

तुम और मैं एक दूसरे के बिल्कुल उलट थे। उतने ही अलग जितना जमीन और आसमान अलग हैं। फ़िर भी ये आसमान हर कदम जमीन के साथ चलता है बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं और तुम साथ चला करते थे। हमें लगता है दूर कहीं किसी छोर पर ये आसमान और जमीन गले मिल रहे हैं वो भी बिना एक दूसरे का अस्तित्व मिटाए। और ऐसे ही एक दिन हम भी चलते चलते अपना छोर ढूंढ़ लेंगे।


तुम्हें उगते सूरज की चंचलता पसंद थी क्योंकि हर सुबह उठकर तुम्हे दुनिया के कुछ और रंग देखने की चाहत रहती थी। पर मुझे डूबते सूरज के सुकून का इंतज़ार रहा करता था जब हम अपनी थकान का बस्ता उतारकर फिर से उन अंधेरों में अपना उदास चेहरा छुपा सकते हैं।

कभी कभी हमारी आदतें हमारा भविष्य तय करती हैं या यूँ कहें कि हमारी आदतें हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं। हम जब तक सिर्फ़ कुछ ही रंगों के बारे में जानते हैं तब तक हमें अपना पसंदीदा रंग तय करने में मुश्किल नही होती पर जैसे जैसे हम कुछ और रंगों को जानना शुरू करते हैं वैसे वैसे हमें अपनी पसंद का रंग बताना मुश्किल लगने लगता है।

जीवन तब तक आसान रहता है जब तक हम कुछ ढूँढ़ना शुरू नही करते और जैसे ही हम तलाश शुरू करते हैं हमें पता चलता है कि एक चीज़ की तलाश दूसरे चीज़ की खोज पर ख़त्म होती है। हमारा लक्ष्य हमेशा अपना रूप बदलता रहता है और हम बस उसके पीछे भागते ही रहते हैं।

तितलियों का पीछा करती हुई अब तुम मेरी पहुँच से बहुत दूर जा चुकी हो। तुम्हें वो उपवन मिल गया है जहाँ ढेर सारी तितलियों के साथ रंग बिरंगे फूल भी हैं, और अंधेरों में रहते हुए अब मुझे रातों से लगाव हो गया है। मैं अब सुबहों से दूर रहना चाहता हूँ।

जमीन के उस छोर पर आकर जहाँ से समंदर शुरू होता है मैं ये तो जान गया हूँ कि ये आसमान और जमीन कहीं नही मिलते। ये साथ आने की चाहत जरूर रख सकते हैं पर साथ हो नही सकते।

- अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...