जाने क्यों हर रोज बस एक ख़्वाब आता है
बोसे लेने को इस जमीं पे माहताब आता है
सवालों की फ़ेहरिश्त बड़ी लंबी हो चली थी
दूर फ़लक से उन सभी का जवाब आता है
अँधेरे की एक चादर लिपटी हुई है बदन से
डर को भगाने खिड़की पे आफताब आता है
कई रोज गुजरे इन मायूसियों में कैद हुए
तोड़ने जंजीरें सभी अब इंकलाब आता है
नाउम्मीदी के भंवर में अब उलझना कैसा
बढ़ाने कश्ती मेरी हौसलों का सैलाब आता है
निकला जो 'मौन' बुलंद इरादे साथ लेकर
लौटकर हर शख्स फिर कामयाब आता है
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शाबाश टीम इंडिया !! “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏
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