ज़िक्र ना करो दास्तान-ए-इश्क़ का हम डर जायेंगे
अरमानों का जनाजा उठ चुका हम भी मर जायेंगे
बड़े जतन से समेटा है टूटे दिल के टुकड़ों को
ठोकर जो लगी यादों की बस यहीं बिखर जायेंगे
कुछ लफ्ज़ बहकेंगे जब तार दिल के छेड़ दोगे
बेवजह ही अभी यारों की नज़रों से उतर जायेंगे
खुद को लुटा बैठे उनपे प्यार बेहद ही रहा अपना
बेवफाई में जो बहके तो फिर हद से गुजर जायेंगे
साकी से मिलने को मयखानों का रुख जो किया
अब तो आँखों के पानी से ही ये प्याले भर जायेंगे
होंठों पे हंसी जो बिखरी है अपनों की सोहबत में
अश्कों को बहाने अंधेरों में फिर अपने घर जायेंगे
कर सको अगर वादा महफ़िल में 'मौन' बिठाने का
दर्द-ए-दिल तुम्हारा सुनने कुछ पल और ठहर जायेंगे
वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर
जी शुक्रिया आपका🙏
Deleteवाह जी शानदार ��
ReplyDeleteजी शुक्रिया आपका🙏
Deletem speechless of this creation.....hats off...
ReplyDeleteThank u very much🙏
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