आँखें जो खुली तो उन्हें अपने क़रीब पाया ना था
कभी थे रूह में शामिल आज उनका साया ना था
बेपनाह मोहब्बत की जिनसे उम्मीदें लिये बैठे थे
उनसे तन्हाइयों की सौगातें मिलेंगी बताया ना था
एक हम ही कसीदे हुस्न के हर बार पढ़ते रहे
पर उसने तो कभी हाल-ए-दिल सुनाया ना था
वो फिरते रहे दिल में ना जाने कितने राज लिये
हमने तो कभी उनसे जज्बातों को छुपाया ना था
जाने क्यों हम बेवजह मदहोश हुआ करते थे
जाम आँखों से तो कभी उसने पिलाया ना था
मीलों कब्ज़ा कर बना रखा था सपनों का महल
पर उसने वो ख़्वाब कभी आँखों में सजाया ना था
धड़कन 'मौन' हुई अब एक आह की आवाज़ है
शिकवा क्या उनसे जिसने कभी अपना बनाया ना था
जाने क्यों हम बेवजह मदहोश हुआ करते थे
ReplyDeleteजाम आँखों से तो कभी उसने पिलाया ना था... आह हा हा
मीलों कब्ज़ा कर बना रखा था सपनों का महल
पर उसने वो ख़्वाब कभी आँखों में सजाया ना था..... वाह वाह क्या बात है
धड़कन 'मौन' हुई अब एक आह की आवाज़ है
शिकवा क्या उनसे जिसने कभी अपना बनाया ना था.... गिले शिकवे उन्ही से होते है जिनसे कोई वास्ता हो.
शानदार गजल है.
कविता और मैं
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सराहना के लिये हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 03 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका🙏
Deleteवाह्ह...वाह्ह्ह...शानदार,बेमिसाल गज़ल...बहुत खूब हर शेर मन को छू गयी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏
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