बीती रात वो कुछ इस तरह हमें बरगलाते रहे
तलब थी खट्टे आम की वो अंगूर खिलाते रहे
हसरतें थी उन्हें सारी रात जगाये रखने की
वो साँझ ढले से जुल्फों की छाँव में सुलाते रहे
नग़मे इश्क़ के याद किये सारे उनकी ख़ातिर
एक वो थे जो हमें बस लोरियाँ सुनाते रहे
बरसों की प्यास लबों से बुझाने की ख़्वाहिश
निगाहों से पिलाये कौन वो आँख दिखाते रहे
चाँद होश में नही था चाँदनी शरमाई सी थी
हुस्न-ए-दीदार ना हुआ वो चेहरा छुपाते रहे
जज़्बात मन के अरमान दिल के उफ़ान पे थे
मिन्नतें भी की और आख़िरी पहर तक मनाते रहे
क़ुर्बत के रास्ते सोहबत के वास्ते हर दलील पेश की
उनके खामोश लब 'मौन' रहने के फायदे गिनाते रहे
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