क्यों माई मुझे अब बुलाती नही है
क्या तुझको मेरी याद आती नही है
बड़ी बेरहम है शहर की ये दुनिया
जो भटके तो रस्ता दिखाती नही है
हैं ऊँची दीवारें और छोटे से कमरे
चिड़िया भी आकर जगाती नही है
कई रोज से पीला सूरज ना देखा
चाँदनी भी अब मुझको भाती नही है
ये व्यंजन भी सारे फीके से लगते
उन हाथों की तेरे चपाती नही है
वो गाँव की गलियां वो झूले वो बगिया
वो यादें ज़हन से क्यों जाती नही है
ये लल्ला तेरा देख कब से ना सोया
क्यों माई मुझे अब सुलाती नही है
बोझिल सी आँखें मेरी हो चली हैं
ये अश्कों को मेरे छुपाती नही है
क्यों माई मुझे अब बुलाती नही है
क्या तुझको मेरी याद आती नही है
अमित 'मौन'
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