Wednesday, 20 February 2019

मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ


अथाह प्रेम की गहराइयों में उतर
सहनशीलता के चरम को पा लेती हूँ
मैं  प्रेम  में  डूबी  स्त्री  हूँ
मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ

लहरों सी उमड़ती भावनाएँ
बंद  आँखों में दबा लेती हूँ
नदियों सा वेग लिए अश्रुओं को
रुई समान गालों में सुखा लेती हूँ

मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ

मिलन के अनमोल पलों को
मन मस्तिष्क में बसा लेती हूँ
विरह  की  अँधियारी  रातों  में
यादों की बारिश में नहा लेती हूँ

मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ

तानों  के  तीर  हों  तीखे  ही  सही
आह अपनी ख़ुद को ही सुना लेती हूँ
बचाती हर आँच से प्रेम अपना
मैं ख़ुद  को  ही  जला लेती  हूँ

मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ...

अमित 'मौन'

2 comments:

  1. बहुत खूब ...
    स्त्री अपने आप में ऐसा किरदार है जो चमत्कार है इस श्रृष्टि में ...
    जो वो है शायद उससे कहीं कहीं ज्यादा ऊपर है ... बहुत ही प्रभावी लाजवाब रचना ...

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  2. बहुत सुंदर

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