अथाह प्रेम की गहराइयों में उतर
सहनशीलता के चरम को पा लेती हूँ
मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ
मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ
लहरों सी उमड़ती भावनाएँ
बंद आँखों में दबा लेती हूँ
नदियों सा वेग लिए अश्रुओं को
रुई समान गालों में सुखा लेती हूँ
मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ
मिलन के अनमोल पलों को
मन मस्तिष्क में बसा लेती हूँ
विरह की अँधियारी रातों में
यादों की बारिश में नहा लेती हूँ
मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ
तानों के तीर हों तीखे ही सही
आह अपनी ख़ुद को ही सुना लेती हूँ
बचाती हर आँच से प्रेम अपना
मैं ख़ुद को ही जला लेती हूँ
मैं प्रेम में डूबी स्त्री हूँ, मैं सब कुछ छुपा लेती हूँ...
अमित 'मौन'
बहुत खूब ...
ReplyDeleteस्त्री अपने आप में ऐसा किरदार है जो चमत्कार है इस श्रृष्टि में ...
जो वो है शायद उससे कहीं कहीं ज्यादा ऊपर है ... बहुत ही प्रभावी लाजवाब रचना ...
बहुत सुंदर
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