प्रेम पर रची गयी हर कविता में मैं तुम्हे पढ़ता हूँ
विरह के हृदय भेदी शब्दों को महसूस करता हूँ
परिस्थितियों को परिभाषित करते लेख मुझे अपने
से लगते हैं
और संभावनाओं को तलाशती मेरी सोच में सिर्फ
तुम बसती हो
तुम मेरे जीवन पर लिखी गयी वो क़िताब हो जिसके हर पन्ने पर तुम्हारी स्मृतियाँ दर्ज हैं और ये क़िताब मेरे ज़ेहन की सबसे ऊपर वाली अलमारी पर सबसे आगे रखी गयी है और ना चाहते हुए भी मुझे हर रोज इसका कवर देखना पड़ता है, क्योंकि अगली क़िताब तक पहुंचने के लिए मुझे पहली क़िताब को छूना या हटाना पड़ता है.....
सीधे और सरल शब्दों में इसका निष्कर्ष ये है कि हमारे रास्ते भले ही अलग हो गए हों पर हमारा अलग होना उससे ज्यादा मुश्किल भरा है जितना हमारा साथ चलना कठिन था...
अमित 'मौन'
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या बात कह दी... यादों में चलना शायद आसान होगा अब ...
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