Tuesday, 26 February 2019

जीने की वज़ह दे दो

टूटे  इस  रिश्ते  में, आ  कर के  गिरह  दे दो
शिकवों को संग लाओ, लंबी सी जिरह दे दो

अश्कों  से  भरी आँखें, ग़मगीन  सी  हैं  रातें
शामों में हो शामिल, मुझे अपनी सुबह दे दो

तन्हाई   के  आलम   में,  मीलों   मायूसी  है
जीवन में आ जाओ, इस ग़म को विरह दे दो

अपने इस दिल मे तुम, थोड़ी सी जगह दे दो
साँसों  में  समा  जाओ, जीने की वजह दे दो

अमित 'मौन'

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 02 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. तन्हाई के आलम में, मीलों मायूसी है
    जीवन में आ जाओ, इस ग़म को विरह दे दो
    बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. agar aap likhne ke shokin hai to hamari website hindi short stories par likh sakte hain

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  4. बहुत ही सुन्दर.... लाजवाब...

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