एक आशिक़ को इस तरह बेचारा नही करते
बाद जुदाई के प्यार से पुकारा नही करते
कुछ तो खौफ़ ख़ुदा का तुम भी रखो
करके वादे वफ़ा के नकारा नही करते
चल पड़े हो साथ जो याद इतना रखो
बीच सफ़र में किसी को बेसहारा नही करते
एक दफ़ा कह जो देते की वापस आ नही सकते
यूँ सारी उम्र इंतज़ार हम तुम्हारा नही करते
दिल्लगी नही ये बस ग़म छुपाने का ज़रिया है
वो पहली दफ़े वाला इश्क़ दोबारा नही करते
अटक अटक के चल रही है साँसें देखो
अधमरे को और ज्यादा मारा नही करते
अमित 'मौन'
दिल्लगी नही ये बस ग़म छुपाने का ज़रिया है
ReplyDeleteवो पहली दफ़े वाला इश्क़ दोबारा नही करते ...
एक सत्य को लिखा है आपने ... एक सा इश्क दुबारा कहाँ हो सकता है ...
अच्छी ग़ज़ल है ...
बेहद शुक्रिया आपका🙏
Deleteबढ़िया.... होली पर ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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