Monday, 18 March 2019

आशिक़ को इस तरह बेचारा नही करते

एक आशिक़ को इस तरह बेचारा नही करते
बाद  जुदाई  के  प्यार  से  पुकारा नही करते

कुछ  तो  खौफ़  ख़ुदा  का  तुम  भी रखो
करके  वादे  वफ़ा  के  नकारा नही  करते

चल  पड़े  हो  साथ  जो  याद  इतना  रखो
बीच सफ़र में किसी को बेसहारा नही करते

एक दफ़ा कह जो देते की वापस आ नही सकते
यूँ  सारी  उम्र  इंतज़ार  हम  तुम्हारा  नही करते

दिल्लगी नही  ये बस  ग़म  छुपाने का  ज़रिया है
वो  पहली  दफ़े  वाला  इश्क़  दोबारा नही  करते

अटक अटक के चल रही है साँसें देखो
अधमरे को और ज्यादा मारा नही करते

अमित 'मौन'

4 comments:

  1. दिल्लगी नही ये बस ग़म छुपाने का ज़रिया है
    वो पहली दफ़े वाला इश्क़ दोबारा नही करते ...
    एक सत्य को लिखा है आपने ... एक सा इश्क दुबारा कहाँ हो सकता है ...
    अच्छी ग़ज़ल है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका🙏

      Delete
  2. बढ़िया.... होली पर ढेरों शुभकामनाएं!

    ReplyDelete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...