लंका दहन के पश्चात जब हनुमान जी श्रीराम एवं सुग्रीव जी के पास शिविर में वापस आये तो सभी ने हर्षोल्लास के साथ उनका स्वागत किया एवं उनकी वीरता का बखान करना शुरू कर दिया...श्रीराम जी ने भी उनकी भरपूर प्रशंसा की...
परंतु भक्त हनुमान जी.. जो कि अभी भी इस बात से व्यथित थे कि माता सीता किस हाल में लंका नगरी में अपने दिन काट रहीं हैं और वो चाहकर भी उन्हें वहाँ से लाने में असमर्थ रहे (हालाँकि हनुमान जी ने सीता माता से उनके साथ चलने का आग्रह किया था परंतु माता सीता ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि अब प्रभू राम स्वयं ही आकर उन्हें यहाँ से ले जाएंगे) वो इतनी प्रशंसा पाकर असहज हो गए तथा उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से अपने इस काम का श्रेय प्रभू श्रीराम की कृपा तथा बाकी लोगों (जैसे जामवंत जी, माता सीता एवं विभीषण) को दे दिया....
हनुमान जी के शब्दों को परिकल्पित करके इस रचना के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास किया है...आशा है आप सभी इन भावों से जुड़ पाएंगे......
लंक विध्वंस किए हनुमाना
रघुराई अति किए बखाना
तुम्हरी भुजा है शक्ति अपारा
महाबली तुम जग पहिचाना
लांघ जलधि जो पहुँचे लंका
करेउ दूर सीता की शंका
कूद फांद वाटिका उजारी
चहुँ दिशा में तुम्हरा डंका
हनुमान उवाच:-
नाथ सकल ये कृपा तुम्हारी
मैं सेवक सेवा ही प्यारी
आज्ञा पाई सिया सुधि लाऊं
पालन को जाऊं बलिहारी
हुई मंत्रणा पार कोउ जाए
लांघ जलधि कोउ पता लगाए
कथा दिवाकर बाल्यकाल की
जामवंत तब स्मरण कराए
आपन शक्ति कबहुँ ना जाना
वानर साधारण सा हनुमाना
धन्यवाद श्री जामवंत का
सेवक की शक्ति को पहिचाना
लंका पहुँच हुआ दुःख भारी
दिखी कहीं ना सीता महतारी
पूर्ण दिवस थी छानी लंका
मन ही मन में मानी हारी
कृपा प्रभू अद्भुत दिखलाए
राम नाम की ध्वनि सुनाए
लंका में सुमिरै नाम तिहारा
भक्त विभीषण प्रभू मिलाए
जो मिलते ना रावण के भ्राता
उस स्थल को ढूंढ़ ना पाता
मिलती कैसे 'अशोक वाटिका'
वियोग में थी जहाँ सीता माता
पहुँच वाटिका काज ये कीन्हा
चूड़ामड़ी मात को दीन्हा
भेंट दिए प्रभू स्वयं आप ही
तुम्हरी कृपा मात मोहि चीन्हा
मात की आज्ञा से फल खाए
सकल असुर तब पाछे आए
मात कृपा से शक्ति पाई
मारी लात धाम पहुँचाए
सुनी खबर रावण खिसियाया
अक्षय कुमार था युद्ध को आया
आशीष मात का कृपा ऐसी
मुष्टि प्रहार से प्राण गंवाया
अति क्रोधित रावण खिसियाना
पठएसि मेघनाद बलवाना
तुम्हरी कृपा समर्पण कीन्हा
शस्त्र वो नागपाश पहिचाना
कर विमर्श ये लंकापति कीन्हा
दूत समझ मोहे मृत्यु ना दीन्हा
पूँछ मोरे फिर अनल लगाए
प्रतिशोध पुत्र मृत्यु का लीन्हा
वानर ने तब पूँछ बढ़ाई
लंका में फिर आग लगाई
पूर्ण काज फिर आपन कीन्हा
पूँछ मोरी की अनल बुझाई
कृपा आपकी जो कर पाया
लंका से माता सुधि लाया
राम नाम की महिमा ऐसी
सहयोग सभी का मैंने पाया
अब विनती यह प्रभू हमारी
रावण संहार की करें तैयारी
दशरथ नंदन की आस में व्याकुल
राह तके हैं जनक दुलारी
और इस प्रकार भक्त हनुमान जी ने बड़ी सरलता से सारा श्रेय अपने प्रभू को दे दिया और साथ ही उनसे माता सीता को शीघ्र वापस लाने की विनती की.....
अमित 'मौन'
सुधि- खबर
मंत्रणा- बातचीत
जलधि- सागर
दिवाकर- सूरज
सकल- सभी/सम्पूर्ण
खिसियाना- क्रोधित होना
मुष्टि- मुट्ठी/घूंसा
अनल- अग्नि/आग