आदतन रो लेता हूँ अब
उदासी खूब भाती है
तन्हाई माशूका है मेरी
दूर जा जाके लौट आती है
दिल के दरिया से निकल
कोई नदी सी आती है
पलकों के पहरे को तोड़
लहरों सी बह जाती है
ख़ामोशियों के साये में
एक आह गुनगुनाती है
चीख़ कर चुपके से ये
सुकून सा दे जाती है
दिन दुश्मन हुए अब
रातें बड़ा सताती हैं
करवटें बदल लेता हूँ
जब नींद नही आती है
वक़्त बेवक़्त ये यादें
बिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ समझ पाती हैं
अक़्सर रो ही लेता हूँ फिर
जब उदासी गले लगाती है
तन्हाई माशूका जो ठहरी
दूर जा जाके लौट आती है
दूर जा जाके लौट आती है
अमित 'मौन'
अक़्सर रो ही लेता हूँ फिर
ReplyDeleteजब उदासी गले लगाती है
तन्हाई माशूका जो ठहरी
दूर जा जाके लौट आती है बेहतरीन रचना अमित जी
हार्दिक धन्यवाद आपका🙏
Deleteकरवटें बदल लेता हूँ
ReplyDeleteजब नींद नही आती है
बहुत सुंदर
बेहद शुक्रिया आपका🙏
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/04/2019 की बुलेटिन, " 23 अप्रैल - विश्व पुस्तक दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका🙏
Deleteवक़्त बेवक़्त ये यादें
ReplyDeleteबिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ समझ पाती हैं...दर्द में सिमटी सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏
Deleteवक़्त बेवक़्त ये यादें
ReplyDeleteबिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ समझ पाती हैं
बहुत सुन्दर....
वाह!!!!
बेहद शुक्रिया आपका🙏
Deleteहार्दिक आभार आपका🙏
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteरो लेना अच्छा होता हिया कई बार ... मन हल्का हो जाता है ...
अच्छी रचना ...
हार्दिक धन्यवाद आपका
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