सुबह ने कान में
कुछ कह दिया उधर सूरज से
झाँकने लगी है किरणें
इधर खुली खिड़कियों से
दीवारें चीख रही हैं
शायद कोई किस्सा लिए
बिखरे पड़े हैं कुछ पन्ने
इस वीरान से कमरे में
एक शख़्स दिखा था
यहाँ रात के अंधेरे में
निगल गयी तन्हाई या
बहा ले गए आँसू उसे
शिनाख़्त करते हैं
चलो ये पन्ने समेटते हैं
हादसों के हवाले से
अब ये कहानी पढ़ते हैं
तन्हाई चीख़ चीख़ कर यही बात कहती है
हर बंद कमरे में कोई कहानी रहती है...
अमित 'मौन'
यकीनन, बन्द कमरे में कहानी रहती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद आपका
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-04-2019)"सज गई अमराईंयां" (चर्चा अंक-3312) को पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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