सोशल मीडिया मोहल्ले के उस पार्क की तरह है जहाँ हम सुबह या शाम को अपना खाली वक़्त बिताने जाते हैं या यूँ कहें दिन भर की थकान और मानसिक तनाव के बाद कुछ पल का सुकून ढूंढ़ने जाते हैं...पार्क में खेलते बच्चे और उनके अनोखे खेल कुछ पल के लिए ही सही हमारे चेहरे पर मुस्कान जरूर ले आते हैं।
उसी पार्क की बेंच पर बैठे हुए कुछ हमारे जैसे लोग भी मिलते हैं जो शायद हमारी ही तरह ज़िंदगी की उलझनों से दूर कुछ पल का आराम ढूंढ़ने आते हैं..उनकी और हमारी मनोदशा कमोबेश एक ही होती है पर वो और हम दोनों एक दूसरे को एक प्यारी सी मुस्कान भरी नजरों से देखते हैं...बात करने का कोई बहाना ढूँढ़ते है मसलन राजनीति या कोई सामाजिक विषय...और कई बार तो हम उसी पार्क की दुर्दशा के बारे में चर्चा करने लगते हैं जिसकी दशा को शायद हम जैसे लोगों ने ही बिगाड़ दिया हो..हम नगर निगम को उसकी सफाई या जीर्णोद्धार के लिए दोष देने लगते हैं जिसमें सारा कूड़ा हमने ही फैलाया हैं या जिसकी बेंच और झूलों को हमारे ही बच्चों ने तोड़ा है।
ख़ैर कुछ पल की चर्चा और मनोरंजन के बाद हम सभी अपनी अपनी व्यस्तताओं में लीन होने के लिए दोबारा प्रस्थान करते हैं...पर अगले दिन वापस जरूर आते हैं फिर से कुछ पल का सुकून ढूंढ़ने के लिए.....
बेंच वाले साथी हमारे ऑनलाइन फ़्रेंडलिस्ट के लोग हैं, फनी वीडियो और मीम उस पार्क में खेलते बच्चे हैं, हमारी पोस्ट और कमेंट हमारी चर्चा है और उन्हीं सब के बीच निकलती अभद्रता, अश्लीलता, विकार और विवाद हमारे द्वारा फैलाई गई गंदगी है।
अमित 'मौन'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसोशल मीडिया एक चौपाल ही है.
ReplyDeleteअच्छा लिखा!
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteसही कहा असल दुनिया से ज्यादा अलग नहीं हैं ये दुनिया |
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सही लिखा आपने 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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