तेरी याद में डूबा हूँ पर
ग़म के प्याले नही भरूँगा
सुन लूँगा इस जग के ताने
नाम तेरा मैं कभी ना लूँगा
बढ़ जाऊंगा तन्हा ही अब
राह तुम्हारी नहीं तकूँगा
यादों की जलती चिंगारी
सिरहाने अब नही रखूँगा
रो लूँगा काली रातों में
आँसू भी गिरने ना दूँगा
तोहफ़े सारे सभी निशानी
आँखों से ओझल कर दूँगा
पढ़ लूँगा मैं उतरे चेहरे
प्रेम कहानी नही पढूँगा
खो दूँगा मैं जो भी पाया
पर क़िस्मत से नही लड़ूंगा
सह लूँगा ये ग़म-ए-जुदाई
पर होंठों पे 'मौन' रखूँगा
तुम्हें लिखूंगा बस कविता में
हर पन्ने पर साथ रहूँगा
अमित 'मौन'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 20 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21 -07-2019) को "अहसासों की पगडंडी " (चर्चा अंक- 3403) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह!
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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