ये लोग होते कौन हैं मुझे जज करने वाले...ये आख़िर जानते ही क्या हैं मेरे बारे में... क्या में सच में ऐसी लगती हूँ... तुम तो जानते हो मुझे...और तुम तो बहुत बड़े समझदार बनते हो.. सच सच बताना क्या तुम्हें भी ऐसा ही लगता है? (लगभग झल्लाती हुई राधा कृष से बोली)
कृष- सबसे पहले तो तुम्हे बता दूँ कि समझदार बनने और समझदार होने में बहुत फ़र्क है। मुझे नही पता कि मैं समझदार हूँ या नही क्योंकि ये स्वयं तय नही किया जा सकता कि आप कैसे हैं।
राधा- यार ये गोल मोल बातें ना करो और जो पूछा है प्लीज उसका जवाब दो। क्या तुम भी मेरे बारे में ऐसा ही सोचते हो?
कृष - तुम बोलने का मौका दोगी तभी तो बताऊंगा (हँसते हुए), देखो ऐसा है इंसान का दिमाग़ एक स्केच आर्टिस्ट के जैसा होता है। जैसे स्केच आर्टिस्ट के सामने आप जैसे दिखते हो वो वैसे ही आपका स्केच बनाता है ठीक उसी तरह कोई इंसान आपको जितना जानता है या जितना आपके बारे में देखा या सुना है वो उसी हिसाब से आपकी एक तस्वीर अपने दिमाग़ में बना लेता है। फ़िर समय और अनुभव के हिसाब से उस तस्वीर में फेरबदल भी होते रहते हैं। यही कारण है किसी भी एक इंसान के बारे में दो लोगों की राय अलग अलग हो सकती है क्योंकि ये विचार उसके अपने अनुभवों से बनते हैं।
राधा- इसका मतलब तुम तो मुझे वैसी नही समझते जैसा बाकी लोग मेरे बारे में बात करते हैं। क्योंकि तुम तो लगभग सब कुछ जानते ही हो मेरे बारे में?
कृष- इसका जवाब मैं तुम्हे पहले ही दे चुका हूँ। क्योंकि मैं तुम्हे दूसरों से ज्यादा जानता हूँ तो यकीनन मेरे विचार दूसरों से अलग होंगे।
राधा- फ़िर तो लोग तुमको भी गलत समझते होंगे? क्योंकि तुम भी तो बहुत कम बात करते हो और तुम्हारे दोस्त भी कम हैं। तुम तो सोशल मीडिया पर भी बहुत कम एक्टिव रहते हो।
कृष- ग़लत सही का तो पता नही पर सोशल मीडिया वाले दोस्त जरूर मुझे कूल समझते होंगे क्योंकि मेरा नाम वहाँ कृष है और मैं पूरे साल में सिर्फ़ अपने आउटिंग वाले पिक्चर्स पोस्ट करता हूँ जिसमें मैं सनग्लासेज़ लगा के पहाड़ों और समुद्र के किनारे पोज दे रहा होता हूँ और उसी हिसाब से वो मुझे जज करते होंगे। अब उन्हें क्या पता कि मेरा असली नाम कृष्णकांत है और मैं अभी थोड़ी देर पहले अपने बॉस से डाँट खा कर यहाँ तुम्हारे पैसों की चाय पी रहा हूँ।
राधा (हँसती हुई)- यार ये तुम्हारे सोशल मीडिया वाले उदाहरण से मेरे सारे डाउट्स क्लियर हो गए। तुम सच में आदमी काम के हो। तुमको चाय पिलाना कभी महँगा नही पड़ता।
दोनों हँसते हुए उस कैफेटेरिया से अपने अपने क्यूबिकल केबिन में वापस चले गए।
अमित 'मौन'
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका धन्यवाद
Deleteसार्थक और विचारशील चर्चा जो रोचक भी है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteThanks for the poost
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