Sunday, 1 November 2020

आओ बैठो और बात करो

क्या बात हुई वो बात कहो

आओ बैठो और बात करो
हैं नाज़ुक लब क्यों सिले हुए
अब शिकवों की बरसात करो।

जो बीत गया वो जाने दो
बातों को बाहर आने दो
इस मन का बोझ उतारो भी
कर लो गुस्सा और ताने दो।

यूँ चुप रहने से क्या होगा
घुट कर सहने से क्या होगा
अब कह भी दो ये बिन सोचे
आख़िर कहने से क्या होगा।

जो आज नही तो कल होगी
मिलकर ही मुश्किल हल होगी
बस कोशिश भर की दूरी है
फ़िर साथ ख़ुशी हर पल होगी।

अमित 'मौन'

    
P.C. - Google


9 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार 3-11-2020 ) को "बचा लो पर्यावरण" (चर्चा अंक- 3874 ) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

      Delete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...