तुम और मैं एक दूसरे के बिल्कुल उलट थे। उतने ही अलग जितना जमीन और आसमान अलग हैं। फ़िर भी ये आसमान हर कदम जमीन के साथ चलता है बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं और तुम साथ चला करते थे। हमें लगता है दूर कहीं किसी छोर पर ये आसमान और जमीन गले मिल रहे हैं वो भी बिना एक दूसरे का अस्तित्व मिटाए। और ऐसे ही एक दिन हम भी चलते चलते अपना छोर ढूंढ़ लेंगे।
तुम्हें उगते सूरज की चंचलता पसंद थी क्योंकि हर सुबह उठकर तुम्हे दुनिया के कुछ और रंग देखने की चाहत रहती थी। पर मुझे डूबते सूरज के सुकून का इंतज़ार रहा करता था जब हम अपनी थकान का बस्ता उतारकर फिर से उन अंधेरों में अपना उदास चेहरा छुपा सकते हैं।
कभी कभी हमारी आदतें हमारा भविष्य तय करती हैं या यूँ कहें कि हमारी आदतें हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं। हम जब तक सिर्फ़ कुछ ही रंगों के बारे में जानते हैं तब तक हमें अपना पसंदीदा रंग तय करने में मुश्किल नही होती पर जैसे जैसे हम कुछ और रंगों को जानना शुरू करते हैं वैसे वैसे हमें अपनी पसंद का रंग बताना मुश्किल लगने लगता है।
जीवन तब तक आसान रहता है जब तक हम कुछ ढूँढ़ना शुरू नही करते और जैसे ही हम तलाश शुरू करते हैं हमें पता चलता है कि एक चीज़ की तलाश दूसरे चीज़ की खोज पर ख़त्म होती है। हमारा लक्ष्य हमेशा अपना रूप बदलता रहता है और हम बस उसके पीछे भागते ही रहते हैं।
तितलियों का पीछा करती हुई अब तुम मेरी पहुँच से बहुत दूर जा चुकी हो। तुम्हें वो उपवन मिल गया है जहाँ ढेर सारी तितलियों के साथ रंग बिरंगे फूल भी हैं, और अंधेरों में रहते हुए अब मुझे रातों से लगाव हो गया है। मैं अब सुबहों से दूर रहना चाहता हूँ।
जमीन के उस छोर पर आकर जहाँ से समंदर शुरू होता है मैं ये तो जान गया हूँ कि ये आसमान और जमीन कहीं नही मिलते। ये साथ आने की चाहत जरूर रख सकते हैं पर साथ हो नही सकते।
- अमित 'मौन'
सुंदर
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
Deleteसच है लेकिन जमीन भी और आसमान भी |
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
Deleteसाथ रहना और साथ होकर भी साथ ना रहना, दोनों में जमीन आसमान का अंतर होता है। बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04-10-2021 ) को 'जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह' (चर्चा अंक-4207) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteतुम और मैं एक दूसरे के बिल्कुल उलट थे। उतने ही अलग जितना जमीन और आसमान अलग हैं। हमें लगता है दूर कहीं किसी छोर पर ये आसमान और जमीन गले मिल रहे हैं वो भी बिना एक दूसरे का अस्तित्व मिटाए। और ऐसे ही एक दिन हम भी चलते चलते अपना छोर ढूंढ़ लेंगे।
ReplyDeleteभावनात्मक सृजन ! अति उत्तम !
कुछ भुला याद आया है संग यादों में खोया हुआ शुकून आया है।
वैसे तो जमीन आसमान में दूरियां बहुत होती है और अंतर भी बहुत पर दोनों एक दूसरे के बगैर अधूरे होते हैं दोनों को एक दूसरे की जरूरत होती है बहुत ही बेहतरीन शानदार और उम्दा प्रस्तुति
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