तुम थी तो सब कितना आसान लगता था। ये दुनिया तुम्हारे इर्द गिर्द सिमटी हुई थी। समंदर की लहरें तुम्हारी आँखों में हिचकोले मारती और पुतली बने आसमान को भिगोया करती थी। केशों में हवाएं कैद करके तुम उंगलियों से तूफान की दिशा तय करती थी। बारिशें तुम्हारी मुस्कुराहट से मिलने आया करती थीं और पेड़ तुम्हारे लिए हरियाली का तोहफ़ा लाया करते थे। हर रास्ता तुमसे होकर गुजरता और हर सफ़र की मंज़िल तुम थी। मैं अनंत संभावनाओं के उस शिखर पर था जहाँ सब कुछ बस पलकें झपकाने जितना आसान था।
पर अब लगता है मैं किसी और दुनिया में हूँ और ये दुनिया इतनी बड़ी है कि हर रोज जाने कितने लोग एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं और फ़िर कभी नही मिल पाते। ख़ुशियों ने रूठकर ख़ुदकुशी कर ली है और पानी बादलों को छोड़कर मेरी आँखों मे बसता है। मैं अनहोनी की आशंकाओं से घिरा हुआ हूँ और वो एक मुमकिन रास्ता ढूँढ़ रहा हूँ जिसकी मंज़िल तुम हो।
मैं दो दुनियाओं के बीच फँसकर सपने और हकीक़त के बीच का फर्क तलाश रहा हूँ और तुम शायद कहीं दूर मेरे इंतज़ार में जीवन के फूलों को मुरझाते हुए देख रही हो।
अमित 'मौन'