क्यों ना सुख दुःख निर्धारित मात्रा में मिले
संघर्ष इतना कि साहस जवाब ना दे
और आराम इतना कि शरीर बोझ ना बने
ज्ञान इतना कि सही गलत में फ़र्क लगे
अज्ञानता इतनी की जीवों में समानता दिखे
मुस्कान ऐसी की मन में कटुता ना रहे
और आँसू ऐसे की आँखों से निश्छलता बहे
सुख इतना कि मन में बस भक्ति जगे
और दुःख इतना कि जीवन श्राप ना लगे।
अमित 'मौन'
संघर्ष इतना कि साहस जवाब ना दे
ReplyDeleteऔर आराम इतना कि शरीर बोझ ना बने
वाह!!!
क्या बात...
लाजवाब सृजन👌👌
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१९-०३-२०२३) को 'वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये'(चर्चा अंक -४६४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार आपका🙏
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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