कब तलक यूँ राज-ए-उल्फ़त ना बतायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही कदम लड़खड़ाते है यहाँ
कब तलक यूँ राज-ए-गुलशन छुपायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही अब गुल खिलते हैं यहाँ
कब तलक यूँ आईने में देख मुस्कुरायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही होंठ सिल जाते हैं यहाँ
कब तलक यूँ धड़कनों को रोक पायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही सांसें तेज़ हो जाती हैं यहाँ
कब तलक यूँ आँखें बंद कर बहाने बनायेंगे हम
दीदार-ए-यार से ही अब नींदें उड़ जाती हैं यहाँ
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