Friday 22 February 2019

यादें...

यादें....

याद है तुम्हें जब थोड़ी सी बारिश में भी मैं बहुत ज्यादा भीग जाया करता था..क्योंकि मैं जानता था घर पहुँचने पर तुम डाँटोगी मुझे और सलाह दोगी की बारिश में कहीं रुक कर इसके थमने का इंतज़ार करना था....

पर क्यों करता मैं इसके रुकने का इंतज़ार जब मुझे पता है कि तुम मेरे पहुँचते ही अपने प्यार की बारिश में मुझे सराबोर कर दोगी...इन गीले कपड़ो के उतरने से पहले तौलिया मेरे सामने होगा...कमरे तक पहुँचने से पहले चाय का कप थामे तुम खड़ी होगी और बिस्तर तक जाने से पहले गर्म सरसों के तेल की कटोरी में डूबी हुई तुम्हारी रुई सी उंगलियाँ मेरे तलवों को स्पर्श कर रही होंगी..

अब तुम ही बताओ कैसे वो बारिश मुझे रोक पाती?
 
खैर...आज फ़िर बारिश हो रही है और मैं इसके रुकने का इंतज़ार कर रहा हूँ......

अमित 'मौन'

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