Monday 22 April 2019

आदतन रो लेता हूँ अब...

आदतन रो लेता हूँ अब
उदासी  खूब  भाती  है
तन्हाई माशूका है  मेरी
दूर जा जाके लौट आती है

दिल के दरिया से निकल
कोई  नदी  सी  आती है
पलकों के पहरे को तोड़
लहरों  सी  बह जाती है

ख़ामोशियों के साये में
एक आह गुनगुनाती है
चीख़ कर  चुपके से ये
सुकून सा  दे  जाती है

दिन  दुश्मन  हुए  अब
रातें  बड़ा  सताती  हैं
करवटें  बदल  लेता हूँ
जब नींद नही आती है
 
वक़्त  बेवक़्त  ये  यादें
बिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ  समझ पाती हैं

अक़्सर रो ही लेता हूँ फिर
जब उदासी गले लगाती है
तन्हाई  माशूका  जो  ठहरी
दूर जा जाके  लौट आती है

दूर जा जाके  लौट आती है

अमित 'मौन'

13 comments:

  1. अक़्सर रो ही लेता हूँ फिर
    जब उदासी गले लगाती है
    तन्हाई माशूका जो ठहरी
    दूर जा जाके लौट आती है बेहतरीन रचना अमित जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका🙏

      Delete
  2. करवटें बदल लेता हूँ
    जब नींद नही आती है

    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका🙏

      Delete
  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/04/2019 की बुलेटिन, " 23 अप्रैल - विश्व पुस्तक दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका🙏

      Delete
  4. वक़्त बेवक़्त ये यादें
    बिछड़ों से मिला लाती हैं
    समझाया दिल को बहुत मगर
    ये आँखें कहाँ समझ पाती हैं...दर्द में सिमटी सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏

      Delete
  5. वक़्त बेवक़्त ये यादें
    बिछड़ों से मिला लाती हैं
    समझाया दिल को बहुत मगर
    ये आँखें कहाँ समझ पाती हैं
    बहुत सुन्दर....
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका🙏

      Delete
  6. हार्दिक आभार आपका🙏

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब ...
    रो लेना अच्छा होता हिया कई बार ... मन हल्का हो जाता है ...
    अच्छी रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

      Delete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...