Thursday 2 May 2019

पाकर तुमको ये जाना है मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया...

प्रेम पथिक बनने की मैंने,
वजह को ऐसे ढूंढ़ लिया
चाँद सितारों से जाकर के,
पता तुम्हारा पूछ लिया

पाकर तुमको ये जाना है-2,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

पतझड़ के मौसम में जैसे,
पेड़ कोई मुरझाया था
बरखा की बूंदों के जैसा,
प्रिये तुम्हारा साया था
भँवरे ने बगिया में जैसे-2,
फूल कोई हो सूँघ लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

तू पुरवा के मस्त पवन सी,
मैं झोंका आवारा था
तेरी छुअन से फ़िज़ा ये बदली,
महका उपवन सारा था
किसी शराबी के जैसे फ़िर-2,
मैं मस्ती में झूम लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

दिन गुजरे जब तेरी याद में,
रातें अक़्सर तन्हा हों
नींदों के भी गलियारे में,
जब पलकों का पहरा हो
ख़्वाबों में तुझसे मिलने को-2,
इन आँखों को मूँद लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया
 
इश्क़ दुहाई दे दे कर दिल,
तुझसे ही मिलना चाहे
तेरे जिस्म की ख़ुशबू पाकर,
रूह मेरी खोना चाहे
बाहों में कस कर पकड़ा फिर-2,
माथा तेरा चूम लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

प्रेम पथिक बनने की मैंने,
वजह को ऐसे ढूंढ़ लिया
पाकर तुमको ये जाना है,
मैंने ख़ुद को ढूंढ़ लिया

अमित 'मौन'

14 comments:

  1. हार्दिक आभार आपका

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  2. वाहह्हह.. वाहह्हह... अति सुंदर..लाज़वाब सृजन अमित जी...👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  3. वाह .. बहुत सुंदर

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  4. वाह बेहद शानदार रचना

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  5. वाह वाह बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति।
    अनुपम श्रृंगार रचना।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  6. बेहतरीन रचना

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  7. आवश्यक सूचना :

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  8. सुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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